
वास्तु विज्ञान के अनुसार देवी-देवताओं की कृपा घर पर बनी रहे, इसके लिए पूजाघर वास्तुदोष से मुक्त होना चाहिए. जहां पूजाघर वास्तुदोष के नियमों के विपरीत होता है, वहां ध्यान और पूजा करते समय मन एकाग्र नहीं रह पाता है. इससे पूजा-पाठ का पूर्ण लाभ नहीं मिलता है.
वास्तु विज्ञान के अनुसार पूजाघर पूर्व अथवा उत्तर दिशा में होना चाहिए. इन दिशाओं में पूजाघर होने पर घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। पूजाघर के ऊपर अथवा इसके अगल-बगल में शौचालय या स्नानघर नहीं होना चाहिए। आजकल बहुत से लोग सीढ़ी के नीचे या तहखाने में पूजाघर बनवा लेते हैं, जो वास्तु के अनुसार उचित नहीं है.
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अगर एक ही घर में कई लोग रहते हैं तो अलग-अलग पूजाघर बनवाने की बजाए मिल-जुलकर एक पूजाघर बनवाएं. एक ही मकान में कई पूजाघर होने पर घर के सदस्यों को मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भगवान को एक-दूसरे से कम से कम 1 इंच की दूरी पर रखें। अगर घर में एक ही भगवान की दो तस्वीरें हों तो दोनों को आमने-सामने बिलकुल न रखें। एक ही भगवान के आमने-सामने होने पर घर में आपसी तनाव बढ़ता है.
अगर जगह की कमी के कारण शयन कक्ष में ही पूजाघर बनाना पड़े तो ध्यान रखें कि बिछावन इस प्रकार हो ताकि सोते समय भगवान की ओर पैर नहीं हो. घर का मंदिर सुंदर, स्वच्छ और इतना पवित्र होना चाहिए कि भगवान भी ठहरने को मजबूर हो जाए.