यंहा पर भगवान कृष्ण को लगता है मिट्टी का भोग, वजह जानकर हैरान रह जाएगे आप…

अभी तक आपने भगवान श्रीकृष्ण को माखन मिसरी और अन्य मिठाइयों का भोग लगते देखा होगा लेकिन मथुरा में एक मंदिर ऐसा भी है जहां भगवान श्रीकृष्ण को मिट्टी के पेड़ों का भोग लगाया जाता है। ये मंदिर है मथुरा जनपद के महावन क्षेत्र में। ब्रह्मांड घाट पर स्थित इस मंदिर में मिट्टी के पेड़ों का भोग लगाने की सदियों पुरानी परंपरा है। यह वही मंदिर है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने यशोदा मैया को मुंह में ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे। यहां जन्माष्टमी 13 अगस्त को मनाई जाएगी। 

बाल लीलाओं में है एक लीला
भगवान श्रीकृष्ण की अलौकिक लीलाओं का दर्शन हर जगह है, लेकिन बाल लीलाओं में से एक लीला है मैया यशोदा को ब्रह्मांड के दर्शन कराने की। मान्यता है कि श्रीकृष्ण और बलदाऊ गाय चराने के लिए यमुना किनारे आते थे। बचपन में भगवान कृष्ण मिट्टी खाते थे। उसी समय किसी ने मैया यशोदा से भगवान श्री कृष्ण की शिकायत की कि तुम्हारा लल्ला तो मिट्टी खा रहा है।
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यह सुन यशोदा मैया कृष्ण भगवान के पास पहुंची और पूछा कि लल्ला तुमने मिट्टी खाई है, तो भगवान श्री कृष्ण ने गर्दन हिलाकर मना कर दिया। मैया यशोदा ने कृष्ण भगवान का मुंह जबरस्ती खोलने की कोशिश की यह देखने के लिए कि कान्हा ने मिट्टी खाई है कि नहीं। जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण ने मुंह खोला, मैया यशोदा को पूरे ब्रह्मांड के दर्शन हो गए। तभी से इस जगह को ब्रह्मांड घाट कहा जाता है।
ब्रह्मांड दिखाने के कारण इस मंदिर का नाम ब्रह्मांड बिहारी पड़ गया। इस मंदिर की सबसे अद्भुत और खास बात यह है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण ने बचपन में मिट्टी खाई थी, इसलिए यहां भगवान को लगने वाला भोग मिट्टी का होता है। मिट्टी के पेड़ों का भोग लगने वाला यह एकमात्र मंदिर है।

यमुना से आती है मिट्टी
इस मंदिर के पास ही यमुना नदी बह रही है। पेड़े का भोग या प्रसाद बनाने के लिए यहीं से मिट्टी निकाली जाती है। श्रद्धालु मिट्टी के पेड़ों को प्रसाद अपने घर ले जाते हैं। हालांकि इस बार कोरोना महामारी के चलते मंदिर बंद है और ब्रह्मांड घाट पर ब्रह्मांड बिहारी मंदिर के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु नहीं आ सकते हैं। लेकिन आम दिनों में यहां सैकड़ों कृष्ण भक्त आते हैं। जन्माष्टमी मनाने की परंपरा भी अलग है। यहां जन्म के एक दिन बाद उत्सव मनाया जाता है। 

मंदिर के महंत उद्धव स्वामी ने बताया कि भगवान के यहां 9,00,000 गायें थी। भगवान भी मिट्टी खाते थे। इसलिए यहां मिट्टी का भोग लगता है और आने वाले श्रद्धालुओं को मिट्टी ही प्रसाद में दी जाती है। मैया यशोदा को ब्रह्मांड के दर्शन कराने के कारण इस घाट का नाम ब्रह्मांड घाट पड़ा और भगवान का नाम ‘ब्रह्मांड में हरी’पड़ा।

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