जानिए मुंह के छालों का आयुर्वेदिक उपचार
मुँह के छाले मुंह में विकसित होने वाले तकली फदेह घाव होते हैं। ये घाव छोटे पर अत्यधिक पीड़ादायक होते हैं, और इनके विकसित होने के कई कारण होते हैं। यह घाव मुँह के भीतर या मुँह के बाहर भी विकसित हो सकते हैं।
जो घाव मुँह के बाहर जैसे कि होठों पर विकसित होते हैं, उन्हें ‘कोल्ड सोर्स’ के नाम से जाना जाता है, और यह हर्पिस वाइरस के कारण विकसित होते हैं।
यह अत्यधिक संक्रामक होते हैं, और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में चुम्बन के द्वारा स्थानांतरित होते हैं।
मुँह के भीतर के छाले ‘एफथस अल्सर’ के नाम से जाने जाते हैं।
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मुंह के छालों के कारण
दांतों से जीभ को काटने से या दांतों को ब्रश करते समय मुँह में किसी चीज़ को काट लेने से मुँह के छाले विकसित होते हैं। दांतों में लगे हुए गेलीस (ब्रेसिस) भी मुँह के छालों के कारण बन सकते हैं। एफथस अल्सर मानसिक तनाव के कारण भी विकसित होते हैं, फिर अपने आप ही गायब हो जाते हैं।
मुंह के छालों के घरेलू / आयुर्वेदिक उपचार
- पान में उपयोग किया जानेवाला कोरा कत्था लगाने से मुँह के छालों से राहत मिलती है।
- सुहागा और शहद मिलाकर छालों पर लगाने से या मुलहठी का चूर्ण चबाने से छालों में लाभ होता है।
- मुँह के छालों में त्रिफला की राख शहद में मिलाकर लगायें। थूक से मुँह भर जाने पर उससे ही कुल्ला करने से छालों से राहत मिलती है ।
- दिन में कई बार पानी से गरारे करें।
- अपने मुँह में पानी भरकर अपने चेहरे को धोएं।
- दिन में 3 या 4 बार घी या मक्खन को थपथपाकर लगायें।
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- नारियल के दूध या नारियल के तेल से गरारे करने से मुँह के छालों से राहत मिलती है।
- अलसी के कुछ दाने चबाने से भी मुँह के छालों में लाभ मिलता है ।
- पके हुए पपैये को वेधित करने से उसमे से क्षीर निकलता है और इस क्षीर को छालों पर लगाने से काफी राहत मिलती है।
- 3 ग्राम त्रिफला चूर्ण, 2 ग्राम अधिमधुरम, शहद और घी मिलाकर लेई बनाकर छालों पर लगाने से काफी आराम मिलता है।
- तीखे और मसालेदार खान पान और दही और अचार का सेवन करने से बचें।
- मुँह के छाले कब्ज़ियत के कारण भी होते हैं, और अगर वाकई में यही कारण है तो एक सौम्य रेचक औषधि लें, जिससे आपको काफी राहत मिलेगी। त्रिफला चूर्ण एक बहुत ही उम्दा रेचक औषधि होती है।
- मुंह के छालों पर अमृतधारा में शहद मिलाकर फुरैरी से लगायें। अमृतधारा में 3 द्रव्य होते हैं-पेपरमिंट, सत अजवाईन, और कर्पूर। इन्हें 1 शीशी में भरकर धूप में रख दें, पिघलकर अमृतधारा बन जायेगी।