हर तरफ से घिरीं: कहां चुप हो गई ममता बनर्जी की आवाज, जो राजनीति को हिला दिया करती थी!

पिछले हफ्ते राज्य के हड़ताली डॉक्टरों को आंदोलन खत्म करने के लिए राजी करने के वास्ते पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जिस तरह से उनके आगे झुकना पड़ा, उससे पता चलता है कि भारतीय राजनीति में तूफान खड़ा कर देनी वाली नेता कितनी कमजोर हो चुकी हैं।

ममता बनर्जी

कुछ दिन पहले ही उन्होंने डॉक्टरों से कहा था कि वे काम पर नहीं लौटे, तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा। ऐसे में यह कदम उस नेता के लिए अपमानजनक कहा जा सकता, जिन्हें किसी टकराव में पीछे हटते नहीं देखा गया। यह दिखाता है कि हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी के खराब प्रदर्शन और राज्य में भाजपा से मिल रही कड़ी चुनौती के कारण किस तरह से उनका आत्मविश्वास डगमगा गया है।

पिछले कई वर्षों से दीदी के करीबी रहे एक नेता ने निजी बातचीत में स्वीकार किया कि उनके लंबे उतार-चढ़ाव भरे रहे करियर में वह कभी ऐसे दबाव में नहीं दिखीं, जैसी वह आज नजर आ रही हैं। यह गौर करने लायक है कि तृणमूल कांग्रेस की जो तेजतर्रार नेता कभी चुनौतियों से टकराने में पीछे नहीं रहती थीं, आज ऐसा लगता है कि अपने विपक्षियों से मुकाबला करने को लेकर दुविधा में हैं।

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डॉक्टरों की हड़ताल को लेकर पहले तो उन्होंने अनावश्यक रूप से अड़ंगा लगाया और फिर जिस तरह से उन्होंने उनके आगे समर्पण किया, उससे पता चलता है कि उनकी ढीली होती पकड़ किस तरह से उनके प्रशासनिक नियंत्रण और राजनीतिक इच्छा शक्ति दोनों को ही प्रभावित कर रही है।

वास्तव में 2011 में ताकतवर मार्क्सवादी साम्राज्य को परास्त करने के बाद से ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य पर इस तरह से प्रभुत्व कायम कर लिया था कि वह अब यह स्वीकार करने को तैयार नहीं दिख रही हैं कि राजनीतिक नियति का पहिया एक बार फिर घूम रहा है और इस बार उसके नीचे वह खुद और उनकी पार्टी आ गई है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री दोहरे जोखिम का सामना कर रही हैं।

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