जानिये वो गुण, जो मदर टेरेसा को आज दिलाएंगे संत की उपाधि

मदर टेरेसावेटिकन सिटी. भारत रत्न मदर टेरेसा को आज संत की उपाधि से सम्‍मानित किया जायेगा। ईसाइयों के धर्मगुरू पोप फ्रांसिस मदर टेरेसा को उपाधि देंगे। करीब 10 हजार लोग इस मौके पर मौजूद होंगे। भारत से सुषमा स्वराज इस समारोह में पहुंची हैं। वेटिकन के लोकल टाइम के मुताबिक सुबह 10.30 बजे उपाधि दी जाएगी तब भारत में 2 बज रहे होंगे।

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टेरेसा ने जितने गरीब और निराश्रित लोगों की सेवा की है, उनके लिए तो वे पहले से ही संत थीं। वेटिकन की दुनिया में भी कई लोगों का यही मानना होगा लेकिन कैथोलिक चर्च की किसी भी शख्सियत को संत घोषित करने की आधिकारिक प्रक्रिया है। इसके तहत विशेषज्ञों का दल बड़े पैमाने पर ऐतिहासिक शोध, चमत्कारों की खोज और उसके सबूत का आंकलन करता है।

मदर टेरेसा को संत बनाने की प्रक्रिया

मदर टेरेसा के मामले में इस प्रक्रिया का समापन रविवार को 20 साल बाद होगा। पोप फ्रांसिस मदर टेरेसा को संत घोषित करेंगे। इसके लिए जिस प्रक्रिया को अपनाया जाएगा, वह इस प्रकार है।

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संत घोषित करने की प्रक्रिया की शुरुआत उस स्थान से होती है, जहां वह रहे या उनका निधन हुआ। मदर टेरेसा के मामले में यह जगह कोलकाता है। यहाँ उनका निधन हुआ था। प्रॉस्ट्यूलेटर, प्रमाण और दस्तावेजों को संत का दर्जा देने की सिफारिश करते हुए वेटिकन कांग्रेगेशन तक पहुंचाते हैं।

कांग्रेगेशन के विशेषज्ञों के सहमत होने पर इस मामले को पोप तक पहुंचाया जाता है। वे ही उम्मीदवार के ‘नायक जैसे गुणों’ के आधार पर फैसला लेते हैं। अगर प्रॉस्ट्यूलेटर को लगता है कि उम्मीदवार की प्रार्थना पर कोई रोगी ठीक हुआ है और उसके भले चंगे होने के पीछे कोई चिकित्सीय कारण नहीं मिलता है तो यह मामला कांग्रेगेशन के पास संभावित चमत्कार के तौर पर पहुंचाया जाता है, जिसे धन्य माने जाने की जरूरत होती है। संत घोषित किए जाने की प्रक्रिया का यह पहला पड़ाव है।

चकित्सकों के पैनल, धर्मशास्त्रीयों, बिशप और चर्च के प्रमुख (कार्डिनल) को यह प्रमाणित करना होता है कि रोग का निदान अचानक, पूरी तरह से और दीर्घकालिक हुआ है और संत दर्जे के उम्मीदवार की प्रार्थना के कारण हुआ है। इससे सहमत होने पर कांग्रेगशन इस मामले को पोप तक पहुंचाता है और वे फैसला लेते हैं कि उम्मीदवार को संत घोषित किया जाना चाहिए।

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हालांकि संत घोषित किए जाने के लिए दूसरा चमत्कार भी जरूरी होता है। संत घोषित करने की प्रक्रिया की आलोचना भी होती है क्योंकि इसे खर्चीला और गोपनीय माना जाता है। यह भी माना जाता है कि इसका दुरुपयोग हो सकता है। राजनीति, वित्तीय और आध्यात्म क्षेत्र के दबाव के चलते किसी एक उम्मीदवार को कम समय में संत का दर्जा मिल सकता है जबकि कोई और सदियों तक इसके इंतजार में रहना पड़ सकता है।

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