जानिए शिव का ऐसा मंदिर, जहां की जाती है उनकी भुजाओं की पूजा…

शिव भक्तों के लिए पूरे वर्ल्ड में ऐसे शिव मंदिर हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वहां एक बार शिव के दर्शन करने से तमाम इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। शायद इसलिए हर साल इन मंदिरों में करोड़ों लोगों की भीड़ दर्शन के लिए उमड़ती हैं।

शिव दुर्गा मंदिर, मंगल महादेव बिरला कानन, प्राचीन शिव मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर और भी कई ऐसे शिव मंदिर हैं जहां हर साल दर्शन करने के करोड़ों भक्तों की भीड़ उमड़ती हैं। लेकिन हमा यहां बात कर रहे हैं शिव के एक ऐसे मंदिर की जहां उनकी बाहों की पूजा की जाती है।

दरअसल ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव एक बैल के रूप में अंतर्धयान हुए तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमांडू में प्रकट हुआ और अब वहां पशुपतिनाथ का मंदिर है.।

शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेर में और जटा कल्पेर में प्रकट हुई इसलिए इन चारों स्थानों सहित केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है, यहां शिव के भव्य मंदिर बने हुए हैं।

तो चलिए चलते हैं शिव के उस मंदिर के बारे में जानने के लिए जहां उनकी भूजाओं की पूजा की जाती है मतलब कि तुंगनाथ मंदिर। केदारनाथ कमेटी के सदस्य जनक राज बंसल की आपको बताएंगे कि आखिरकार क्यों तुंगनाथ वर्ल्ड फेमस है और क्या है उसके पीछे की कहानी।

तुंगनाथ जहां होती है शिव के हृदय और बाहों की पूजा

उत्तराखंड में स्थित तुंगनाथ मंदिर में भगवान शिव के हृदय और बाहों की पूजा होती है। यह केदारनाथ और बद्रीनाथ के करीब-करीब बीच में है।

हिमालय के दामन में स्थित तुंगनाथ मंदिर भक्तों के लिए आकषर्ण का केंद्र है। इस जगह की खासियत यह है कि यहां आकर हर एक इंसान तनाव को भूल, यहां कि शांति को महसूस करने लगता है। यहां के शांत माहौल का लोगों पर इतना प्रभाव पड़ता है कि जीवन के प्रति उनका नजरिया ही बदल जाता है।

तुंगनाथ मंदिर, यहां की सुन्दरता आप कभी भूल नहीं पाएंगी।

तुंगनाथ मंदिर अपने धार्मिक महत्व के साथ-साथ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी फेमस है। यहां पहुंचने के दौरान प्रकृति का सानिध्य अलग ही अहसास कराता है। यहां की यात्रा कुछ दुर्गम जरूर लगती है परंतु इसका अनुभव पर्यटकों को रोमांचित कर देता है। यहां रास्ते में गणोशजी का एक छोटा सा मंदिर भी पड़ता है।

ऐसा माना जाता है कि उनके आशीर्वाद से आगे की यात्रा बिना किसी विघ्न के पूरी होती है। ठंडी और ताजा हवाएं भक्तों को थकावट का अहसास नहीं होने देती हैं।

तुंगनाथ पहुंचते ही चारों ओर तरह-तरह के रंगिबरंगे फूलों के दर्शन कर सारी थकावट ही दूर हो जाती है। इसके अलावा यहां पक्षियों की चहचहाहट और झरने का सीन आपको कुछ ही सैकेंड में अपनी ओर आकर्षित कर लेगा।

जानिए शिव का ऐसा मंदिर, जहां की जाती है उनकी भूजाओं की पूजा...

तुंगनाथ मंदिर की ये हैं खासियत

इस मंदिर से जुड़ी कई कहानियां और मान्यताएं प्रसिद्ध हैं। ऐसा कहते हैं कि यहां पर भगवान शिव के हृदय और बाहों की पूजा होती है।

जानिए शिव का ऐसा मंदिर, जहां की जाती है उनकी भूजाओं की पूजा...

यहां आपको बता दें कि समुद्रतल से इस मंदिर की ऊंचाई 12,000 फुट से ज्यादा है। इसी कारण इस मंदिर के आस-पास के पहाड़ों पर बर्फ जमी रहती है। अन्य चार धामों की तुलना में यहां पर शिव भक्तों की भीड़ कुछ कम होती है इसके बावजूद फिर भी हजारों की संख्या में हर वर्ष भक्तों का यहां तांता लगा रहता है।

यह है तुंगनाथ मंदिर के पीछे की कहानी

इस मंदिर के बारे में पौराणिक कथा प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडवों पर अपने भाइयों की हत्या का आरोप लगा। ऐसे में पांडव भातृहत्या पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना आवश्यक था लेकिन भगवान शिव पांडवों से मिलना नहीं चाहते थे।

पांडव उनके दर्शन के लिए काशी गए पर वहां भी वे नहीं मिले। तब वे उन्हें खोजते हुए हिमालय तक जा पहुंचे लेकिन फिर भी भगवान के दर्शन उन्हें नहीं हुए।

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भगवान शिव केदारनाथ जा बसे लेकिन पांडव अपने इरादे के पक्के थे। वे उनका पीछा करते हुए केदारनाथ पहुंच गए।

भगवान शिव ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया था लेकिन पांडवों को संदेह हो गया था। ऐसे में भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिए। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए परंतु शंकर रूपी बैल भीम के पैर के नीचे से कैसे निकलते। भीम ने जैसे ही उस बैल को पकड़ना चाहा वह धीरे-धीरे जमीन के अंदर होने लगा।

भीम ने बैल के एक हिस्से को पकड़ लिया। पांडवों की भक्ति और दृढ़-संकल्प देख भगवान शंकर प्रसन्न हो गए और उन्होंने पांडवों को दर्शन देकर पाप मुक्त कर दिया।

उसी समय से भगवान शंकर के बैल की पीठ की आकृति पिंड रूप में केदारनाथ में पूजी जाती है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान बैल के रूप में अंतर्धयान हुए तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमांडू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का मंदिर है।

शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेर में और जटा कल्पेर में प्रकट हुई इसलिए इन चारों स्थानों सहित केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिव के भव्य मंदिर बने हुए हैं।

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ऊखी मठ-चोपता  मार्ग पर मुक्खु मठ  स्थित है। मुक्ख मठ  तक सड़क मार्ग से पहुंचा जाता है। फिर आगे लगभग 3.5 किलोमीटर की यात्रा पैदल की जाती है।  हिमालय  में  प्रकृति  और पर्वतीय  सौंदर्य का आकर्षक यहां आकर पूरा हो जाता है। घने जंगल से गुजरता हुआ मंदिर तक का मार्ग भक्तो के मन में  सदा के लिए अपनी छाप  छोड़ जाता है। जो साधक एकांत में  साधना करने की इच्छा रखते हैं उनके लिए यह स्थान पूरी तरह उपयुक्त है।

जनवरी से फरवरी तक तुंगनाथ मंदिर पूरे तरीके से बर्फ से ढका रहता है।

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