भगवान शिव के अवतार हैं कालभैरव, जानें जन्म की अनूठी कथा

आज हम आपको बाताएगें की कालभैरव के जन्म की अनूठी कथा:-   

भगवान शिव के अवतार काल भैरव का जन्म अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर हुआ था। ऐसी मान्यता है कि काल भैरव की पूजा से घर में नकारत्मक ऊर्जा, जादू-टोने, भूत-प्रेत आदि का भय नहीं रहता। कालभैरव अष्टमी के मौके पर आइए जानते हैं कैसे हुआ काल भैरव का जन्म और क्या पूरी कथा…

कालभैरव

काल भैरव जन्म कथा

कालभैरव के जन्म को लेकर पुराणों में एक बड़ी ही रोचक कथा है। शिव पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में कौन सर्वश्रेष्ठ है इस बात को लेकर वाद-विवाद पैदा हो गया। तब दोनों ने अपने आपको श्रेष्ठ बताया और आपस में  एक दूसरे से युद्ध करने लगे। इसके बाद सभी देवताओं ने वेद से पूछा तो उत्तर आया कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है भगवान शिव ही सर्वश्रेष्ठ हैं।

जब ब्रह्माजी ने शिवजी को कहे अपशब्द

वेद के मुख से शिव के बारे में यह सब सुनकर ब्रह्माजी ने अपने पांचवें मुख से शिव के बारे में भला-बुरा कहा। इससे वेद दुखी हुए। उसी समय एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए। तब ब्रह्मा ने कहा कि हे रूद्र तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो। अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम रूद्र रखा है इसलिए तुम मेरी सेवा में आ जाओ।

काल भैरव ने नाखून से काटा ब्रह्माजी का सिर

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ब्रह्माजी के इस आचरण पर शिवजी को भयानक क्रोध आ गया और उन्होंने भैरव को उत्पन्न करके कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो। दिव्य शक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमान जनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को ही काट दिया।

काशी में मिला ब्रह्मा हत्या से मुक्ति

बाद में शिवजी के कहने पर भैरवजी काशी प्रस्थान किये जहां ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। रूद्र ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्ति किया। आज भी ये काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। इनका दर्शन किये वगैर विश्वनाथ का दर्शन अधूरा रहता है।

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