‘द ताशकंद फाइल्स’ देश के दूसरे प्रधानमंत्री की मौत के रहस्य से पर्दा उठाती…

मुंबई। 10 जनवरी 1966 को हुए ताशकंद में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर करार के महज 12 घंटे बाद ही यानी 11 जनवरी को लाल बहादुर शास्त्री का अचानक निधन को गया था। उसके बाद से देश के दूसरे प्रधानमंत्री की मौत आज भी एक पहेली बनी हुई है।

'द ताशकंद फाइल्स' देश के दूसरे प्रधानमंत्री की मौत के रहस्य से पर्दा उठाती...

फिल्ममेकर विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ इसी पहेली को सुलझाने का प्रयास करती नज़र आती है। आज यह फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म में सबसे कॉन्ट्रोवर्शियल मिस्ट्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत पर सवाल उठाए गए हैं।

सवाल ये है कि क्या एक्स पीएम की मौत दिल का दौरान पड़ने से हुई थी या फिर उन्हें जहर दिया गया था? क्योंकि मौत के बाद उनका पार्थिव शरीर सूजा हुआ था और काला पड़ चुका था। उनके शरीर पर जगह-जगह कट्स के निशान थे और लाल बहादुर शास्त्री का पोस्टमार्टम भी नहीं कराया गया था।

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फिल्म की कहानी एक महात्वाकांक्षी पॉलीटिकल पत्रकार से शुरू होती है। ये जर्नलिस्ट रागिनी(श्वेता बसु प्रसाद) है। रागिनी के बॉस ने उसे 30 दिन के अंदर कोई स्कूप लाने का अल्टीमेटम दिया है नहीं तो उसे जॉब से हाथ धोना पड़ेगा। ऐसे में रागिनी को अपने बर्थडे पर एक लीड मिलती है जो एक्स पीएम लाल बहादुर शास्त्री की मौत को लेकर है। तब वो इनवेस्टिगेशन में लग जाती है और अपने सवालों से तहलका मचा देती है।

बाद में श्याम सुंदर त्रिपाठी(मिथुन चक्रवर्ती) और पीकेएआर नटराजन(नसीरुद्दीन शाह) जैसे नेता सवालों की सच्चाई जानने के लिए एक कमेटी बनाते हैं। इसमें रागिनी-श्याम सुंदर सहित एक्टिविस्ट(इंदिरा जोसफ रॉय), इतिहासकार(पल्लवी जोशी), ओमकार(राजेश शर्मा), गंगाराम झा(पंकज त्रिपाठी), जस्टिन कुरियन अब्राहम(विश्व मोहन बडोला) जैसे लोग शामिल होते हैं। सवाल गहराते जाते हैं और कई सनसनीखेज खुलासे होते हैं। कुछ लोगों की जान भी चली जाती है। रागिनी के साथ कई षड्यंत्र होते हैं और धमकियां भी मिलती हैं।

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विवेक अग्निहोत्री ने तथ्यों को साबित करने के लिए कई ऐतिहासिक किताबों, खबरों, संदर्भों और तथ्यों का इस्तेमाल किया है। लेकिन वो मुद्दे को सही तौर से दिखा नहीं पाए। कहानी फर्स्ट हाफ में खिंची हुई है लेकिन सेकंड हाफ में ड्रामा ज्यादा हो जाता है और कहानी बोझिल के साथ-साथ खिंची मालूम होती है। फिल्म के क्लाइमैक्स में मेकर लाल बहादुर शास्त्री की मौत को अस्वाभिक साबित भी कर देते हैं।

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