प्रेरक-प्रसंग : राजा और संत

प्रेरक-प्रसंगबहुत समय पहले की बात है। धार्मिक विचारों वाले एक राजा के पास कोई संत मिलने आए राजा प्रसन्न हो गया। भाव विभोर और आंखों में खुशी के आंसू के साथ राजा बोले, ‘मेरी इच्छा है कि आज आपके मन की कोई भी मुराद मैं पूरी करूं। बताइए आपको क्या उपहार चाहिए।’

संत असमंजस में पढ़ गए। उन्होंने कहा, ‘आप स्वयं अपने मन से जो भी उपहार देंगे। वह मैं स्वीकार कर लूंगा।’ लेकिन, राजा ने तपस्वी के सामने अपने राज्य के समर्पण की इच्छा जाहिर की।

तब संत ने कहा, राज्य तो जनता का है। राजा केवल उसका संरक्षक होता है। तब राजा ने दूसरे विकल्प के रूप में महल और सवारी आदि की बात कही। तपस्वी बोले, राजन् यह भी जनता का है। यह तो आपके राज-काज चलाने की सुविधा के लिए हैं।

तब राजा ने तीसरे विकल्प के तौर पर अपना शरीर दान करने की इच्छा जाहिर की। तब संत ने कहा, नहीं राजन् यह शरीर तो आपके बच्चों और पत्नी का है। आप इसे कैसे दान कर सकते हैं। राजा परेशान हो गया।

तब संत ने कहा, राजन् आप अपने मन के अहंकार का त्याग करें। अहंकार ही सबसे सख्त बंधन होता है। अगले दिन सूर्य की पहली किरण के साथ ही राजा ने अहंकार का त्याग किया। तब उसे मानसिक शांति मिली।

अर्थात : 

अहंकार एक ऐसा भाव है, जो जब तक रहता है। व्यक्ति अपनी उन्नति नहीं कर सकता। इसीलिए अहंकार का त्याग करें।

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