प्रकृति ने दी कोरोना को मात, इसलिए दिख रही धीमी रफ्तार

आज पूरा विश्व कोरोना वायरस से लड़ रहा है। इस समय हर किसी की निगाहें सिर्फ भारत पर ही टिकी है हर कोई उम्मीद भरी नजरों से भारत को देख रहै है। अपने देश की आबादी इतनी है कि कोरोना से अच्छे से लड़ सकें। वहीं भारत जैसे विकासशील देश में ये आंकड़ा छह हजार पहुंचा है।सनातन सभ्यता

आंकड़ों से साफ है कि कोरोना के मरीज और मौत के मामले में हिंदुस्तान अभी भी दुनिया के कई देशों से काफी बेहतर स्थिति में है और यही बात पूरी दुनिया को हैरान कर रही है. सवाल है कि जब दुनिया के दर्जन भर से भी ज्यादा देशों में कोरोना वायरस थर्ड स्टेज में पहुंच चुका है तो भारत में अब तक इसकी रफ्तार इतनी सुस्त क्यों है. वो भी तब जबकि स्वास्थ्य सुविधाओं और संसाधनों के मामले में भारत इन देशों के मुकाबले काफी पीछे है. कुछ लोग इसे भारतीयों के मजबूत इम्यून सिस्टम से जोड़ कर देख रहे हैं, जो काफी हद तक सही भी है पर भारत में कोरोना के कम असर की असल वजह है यहां की सामाजिक संस्कृति, सनातनी परंपराएं और प्रकृति के साथ जीने की प्रवृत्ति.

भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना को भी बखूबी समझाती है. ब्रह्मांड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में भी इसका वर्णन है. भारतीय व्रत और त्यौहार मनाने के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण जरूर है. जिन्हें प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों ने व्यापक शोध के बाद प्रकृति के मुताबिक ऋतुओं के परिवर्तन और काल गणना के आधार पर बनाया था. यूं तो वसंत ऋतु को समस्त जीव-जंतुओं और वनस्पतियों के लिए नवजीवन का प्रतीक माना जाता है. वसंत के मौसम मन-आंगन के लिए बहार लेकर आता है. नई ऊर्जा और उम्मीदों का संचार लाता है पर आयुर्वेद में वसंत ऋतु को कई गंभीर बीमारियों और रोगों का जनक माना गया है.

सर्दी, सूखी खांसी और अस्थमा का अटैक, बुखार, निमोनिया, फ्लू और खसरा का खतरा. त्वचा रोग, सीने और सिर में दर्द की शिकायत, गले का दर्द, साइनस, आमवात में सूजन बढ़ना बच्चों की बीमारी और कई संक्रामक रोगों का फैलाव इस मौसम में होता है.

जाहिर है कोरोना जैसे वायरस का कहर भी वसंत ऋतु में ही सामने आया और इसी तरह के खतरे को देखते हुए हमारे देश में सनातन काल से ही इस मौसम में आहार और विहार के संयम और संतुलन पर विशेष जोर दिया गया, साथ ही इस दौरान तन-मन की शुद्धता को भी बेहद जरूरी कहा गया.

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9 दिन का उपवास आतंरिक शुद्धि करता है

सनातन सभ्यता में प्रकृति परिवर्तन की बेला को ही नववर्ष कहा गया है. इसी को ध्यान में रखते हुए नवरात्र के 9 दिन तय किए गए. दरअसल इस दौरान प्रकृति में कई ऐसे बड़े बदलाव होते हैं, जिनसे हमारे तन-मन और दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए सात्विक आहार-विहार और खास दिनचर्या बनाई गई. इसके तहत शरीर की बाहरी शुद्धि के लिए पवित्र वातावरण में पवित्र चीजों से संपर्क रखने के साथ आंतरिक शुद्धि के लिए शक्ति की आराधना और साधना की जाती है.

हवन से विषाणुओं का विनाश

सनातन काल से देश में यज्ञ की परंपरा रही है. कई सालों तक लोग इसे महज एक कर्मकांड मानते रहे लेकिन आधुनिक शोध और अध्ययन से पता चला है कि अग्निहोत्र यज्ञ मानव स्वास्थ्य के साथ ही वायु, धरती और जल में होने वाले विकारों को दूर कर सकारात्मक बदलाव लाता है. खासकर आम की लकड़ी से हवन करने पर फॉर्मिक एल्डिहाइड नाम की गैस निकलती है जो खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है, साथ ही वातावरण को भी शुद्ध करती है.

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