पति व संतान की लम्बी आयु के लिए रखा जाता है यह व्रत, जानें विधि..

‘मंगला गौरी व्रत’ श्रावण मास में श्रावण सोमवार के दूसरे दिन यानी मंगलवार को मनाया जाता है। इस वर्ष ‘मंगला गौरी व्रत’ 13 अगस्त को मनाया जायेगा। इस दिन व्रत रखने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। अत: इस दिन माता मंगला गौरी का पूजन करके कथा सुनना फायदेमंद होता है।

लोगों का ऐसा मानना हैं कि श्रावण मास में मंगलवार को आने वाले सभी व्रत-उपवास मनुष्य के सुख-सौभाग्य में वृद्धि करते हैं। महिलाए खासतौर पर अपने पति की लम्बी आयु और सुखी जीवन की कामना के लिए ये व्रत रखती हैं। सौभाग्य से जुड़े होने के कारण इस व्रत को विवाहित महिलाएं और नवविवाहित महिलाएं रखती हैं। इस उपवास को करने का उद्देश्य अपने पति व संतान की लम्बी आयु व सुखी जीवन की कामना करना हैं।

पूजा में इस्तेमाल करने की सामग्री:-

फल, फूलों की मालाएं, लड्डू, पान, सुपारी, इलायची, लोंग, जीरा, धनिया (सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए), साड़ी सहित सोलह श्रंगार की 16 वस्तुएं, 16 चूडियां इसके अतिरिक्त पांच प्रकार के सूखे मेवे 16 बार, सात प्रकार के अन्न (गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) 16 बार।

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व्रत करने की प्रक्रिया :-

इस व्रत को करने वाली महिलाओं को श्रावण मास के प्रथम मंगलवार के दिन इन व्रतों का संकल्प सहित प्रारम्भ करना चाहिए। श्रावण मास के प्रथम मंगलवार की सुबह, स्नान आदि से निर्वत होने के बाद, मंगला गौरी की मूर्ति या फोटो को लाल रंग के कपडे से लिपेट कर, लकडी की चौकी पर रखा जाता है। इसके बाद गेंहूं के आटे से एक दीया बनाया जाता है, इस दीये में 16-16 तार कि चार बतियां कपडे की बनाकर रखी जाती है।

1- मंगला गौरी उपवास रखने के लिये सुबह स्नान आदि कर व्रत का प्रारम्भ किया जाता है।

2- एक चौकी पर सफेद लाल कपड़ा बिछाना चाहिऐ।

3- सफेद कपड़े पर चावल से नौ ग्रह बनाते है, तथा लाल कपडे पर षोडश माताएं गेंहूं से बनाते हैं।

4- चौकी के एक तरफ चावल और फूल रखकर गणेश जी की स्थापना की जाती है।

5- दूसरी और गेंहूं रख कर कलश स्थापित करते हैं।

6- कलश में जल रखते हैं।

7- आटे से चौमुखी दीपक बनाकर कपड़े से बनी 16-16 तार कि चार बातियां जलाई जाती हैं।

8- सबसे पहले श्री गणेश जी का पूजन किया जाता हैं।

9- पूजन में श्री गणेश पर जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लोंग, पान,चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढ़ाते हैं।

10- इसके पश्चात कलश का पूजन भी श्री गणेश जी की पूजा के समान ही किया जाता है।

11- फिर नौ ग्रहों तथा सोलह माताओं की पूजा की जाती हैं। चढ़ाई गई सभी सामग्री ब्राह्माण को दे दी जाती हैं।

12- मंगला गौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दुर, मेंहन्दी व काजल लगाते है। श्रंगार की  सोलह वस्तुओं से माता को सजाया जाता हैं।

13- सोलह प्रकार के फूल- पत्ते माला चढ़ाते है, फिर मेवे, सुपारी, लौग, मेंहदी, शीशा, कंघी व चूडियां चढ़ाते है।

14- अंत में मंगला गौरी व्रत की कथा सुनी जाती हैं।

15- कथा सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को सोलह लड्डु देती हैं। इसके बाद वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी देती हैं। अंतिम व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विर्सिजित कर दिया जाता हैं।

 

 

 

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