एक पति-पत्नी ने तलाक़ की अर्ज़ी डाली. परिवार अदालत यानी फैमिली कोर्ट ने दोनों को छह महीने के ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ पर रहने को कहा.
जब तक ये पीरियड ख़त्म नहीं होता तब तक दोनों कानूनी तौर पर अलग नहीं हो सकते थे. अब, दिक्कत ये थी कि पत्नी यानी महिला को दूसरी शादी करनी थी.
लेकिन पहले पति से अलग हुए बिना वो दोबारा शादी नहीं कर सकती थी. इसलिए उसने दिल्ली हाईकोर्ट में अर्ज़ी डाली. कोर्ट ने उसकी अर्ज़ी को स्वीकार कर लिया और उसे ‘कूलिंग ऑफ़ पीरियड’ से छूट दे दी.
फ़ैसला सुनाया जस्टिस प्रतीक जलान ने. उन्होंने कहा: “इस जोड़े के बीच रिश्ते सुधरने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आती.”
साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले का भी ज़िक्र किया. जिसके मुताबिक ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ का समय ख़त्म होने से पहले भी तलाक़ की अर्ज़ी स्वीकार की जा सकती है.
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हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने से पहले महिला ने परिवार अदालत में अर्ज़ी डाली थी. उसने कूलिंग ऑफ़ पीरियड ख़त्म करने के लिए अपील की थी. पर कोर्ट ने उसकी अर्ज़ी को ख़ारिज कर दिया.
फिर उसे दिल्ली हाई कोर्ट में जाना पड़ा. हाई कोर्ट ने उसके हक़ में फ़ैसला सुनाया साथ ही परिवार अदालत के फ़ैसले को भी ख़ारिज कर दिया.
अब हमने इतनी बार ‘कूलिंग ऑफ़ पीरियड’ का ज़िक्र तो कर दिया. आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये होता क्या है? ये जानने के लिए हमने प्रांजल शेखर से बात की. वो दिल्ली हाई कोर्ट और ट्रायल्स कोर्ट में वकील हैं. उन्होंने बताया:
“तलाक दो तरह के होते हैं. ‘कॉन्टेस्टेड’ और ‘म्यूच्युअल’. ‘कॉन्टेस्टेड’ वो तलाक होता है जिसमें दोनों पार्टियों में से एक पार्टी तलाक नहीं लेना चाहती. दूसरा होता है ‘म्यूच्युअल’.
इसमें दोनों पार्टियां आपसी रज़ामंदी से तलाक के लिए अर्ज़ी डालती है. ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ केवल ‘म्यूच्युअल’ डाइवोर्स के केस में ही होता है. तलाक के लिए पति-पत्नी दोनों ही कोर्ट में अर्ज़ी डालते हैं.
इसके बाद कोर्ट उन्हें छह से 18 महीने का समय देता है. आपसी दिक्कतें सुलझाने के लिए. इस पीरियड में वो चाहें तो साथ रह सकते हैं या अलग.
पर शर्त होती है कि वो अपने रिश्ते पर काम करेंगे. कूलिंग ऑफ पीरियड खत्म होने पर ही पति-पत्नी दूसरी अर्ज़ी डाल सकते हैं. अगर इस दौरान उनके रिश्ते नहीं सुधरते तो कोर्ट उनकी तलाक की अर्ज़ी स्वीकार कर लेता है. तब जाकर तलाक हो पाता है.”
तो क्या तलाक़ लेने के लिए पति-पत्नी को ‘कूलिंग ऑफ़ पीरियड’ झेलना ही पड़ता है?
प्रांजल कहते हैं:
“नहीं. ऐसा हमेशा ज़रूरी नहीं. कुछ केसेस में कोर्ट ये ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ हटा भी सकता है. पर वो तब ही मुमकिन है जब कोर्ट को लगे कि ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ के दौरान भी दोनों के रिश्तों में सुधार के कोई आसार नहीं है. उल्टा उनके बीच में चीज़ें और ख़राब हो जाएंगी. तब कोर्ट इस पीरियड को ख़त्म कर देता है.”
तलाक लेना जितना आसान दिखता है, उतना है नहीं.