पक्की सड़क न होने के कारण लोग पलायन को मजबूर ,लेकिन…

रिपोर्टर- पुष्कर नेगी

स्थान– चमोली जिले के जोशीमठ सीमान्त क्षेत्र मे स्थित ग्राम पंचायत भलागाँव सूकी चीनी सरहद पर बसा आखिरी भारतीय बसावटी बारामासी गाँव है। यहाँ के ग्रांमीण आज भी पहाड़ो की ऊँची चटटानों के बीच शीतकाल ,ग्रीष्म काल के 12 माह अपने इसी मूल गांव में निवास करते है। हर दिन  पैदल व पथरीले चट्टानों से ग्रामीण जान जोखिम में डाल अपने गांव आते जाते है। यहाँ के लिए मोटर मार्ग 28 वर्ष पूर्व साल 1992 में स्वीकृत हुई थी। जब पूर्व केबीनेट मंत्री केदारसिंह फोनिया विधायक रहे थे, स्वीकृत होने के बाद पीडब्ल्यूडी द्वारा चार बार मोटर मार्ग की सर्वे होने के बाद 2015 व 2016 से लगातार ज्ञापन देने के बाद भी आज तक ग्रामीण दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं,  कई बार शासन प्रशासन को लिखित व मौखिक रूप से ज्ञापन देने और मुख्यमंत्री को पत्र देने के बावजूद भी आज भी जस की तस बनी है। यहाँ व्यवस्था आज भी ग्रामीण मोटर मार्ग की राह देख रहे हैं। 5 किलोमीटर पैदल चट्टानों के बीच अपनी जान जोखिम में डालकर पहाड़ी रास्तों से गुजरने के लिए मजबूर हैं,  जहाँ एक तरफ सरकार आज ग्राम सड़क योजना की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ पहाड़ के लोग आज भी मोटर मार्ग (पक्की सड़क) के लिए तरस रहे है, सीमांत बॉर्डर गांव में ग्रामीणो की सुनने वाला कोई नहीं है, इसलिए यहाँ के लोग काफी परेशान हैं।चमोली

 

गांव में कोई अचानक बीमार पड़ जाता है, तो उन्हें पालकी और खच्चर के सहारे मे मोटर मार्ग तक पहुचना पड़ता है।  कई लोगों की जान तो समय पे हॉस्पिटल न पहुंच पाने से रास्ते में ही मृत्यु हो जाती है। गांव में ना ही स्वास्थ्य सुविधा है, और  ना दूरसंचार है। ना ही सड़क है,  इस कारण काफी लोग आज भी पहाड़ों से पलायन होने के लिए मजबूर है, अपने जन्मभूमि छोड़ने को मजबूर हो रहे है,  और पलायन विभाग मात्र आंकड़े गिन रहा है।

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ग्रामीणो का कहना है की एक तरफ मुख्य मंत्री जी 3 साल के रिपोर्ट कार्ड दिखाने की बात कर रहे है,परन्तु हम लोग आज भी पिछड़े हुए है, आखिर हम जाए तो जाए कहा , जब कोई हमारा सुनने वाला ही नही है, पहाड़ रो रहा है, पर सरकार को कोई फर्क नही पड़ता। अगर फर्क पड़ता तो आज सरकार सबसे पहले पर्वतीय क्षेत्रों की स्थिति सुधारने के प्रयत्न करती।

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