प्रेरक प्रसंग : धैर्य और विश्वास से जीता महायुद्ध

अच्छाई और बुराई की महागाथाओं को अपने में समेटे महाकाव्य महाभारत कई वीरों और वीरांगनाओं के सुनहरे और स्याह पहलूओं से जनमानस को जिंदगी जीने की राह दिखाता है।

धैर्य और विश्वास से जीता महायुद्ध

श्रीकृष्ण इस महागाथा के महानायक थे, तो द्रौपदी कांटों भरी राह पर चलकर विजय का वरण करने वाली वीरांगना। कहा तो यह जाता है कि महाभारत युद्ध की बड़ी वजह द्रौपदी का अहम था, लेकिन हवनकुंड से पैदा होने वाली सुगंधा ने दुख, छल, कपट और नैराश्य के बीच चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया। अब बात करते हैं, द्रौपदी के जीवन से जुड़े कुछ खास पहलूओं की।

नहीं सहती थी द्रौपदी अन्याय-

द्रौपदी बेशक उस दौर की मजबूत और साहसी महिला थी और विद्रोह उनके स्वभाव में था, जो बुराईयों का विरोध करने के साथ उनका डटकर मुकाबला करती थी और उसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करती थी।

जो पसंद आया उसे पाकर रहती थी-

पूरे कथानक में द्रौपदी अपनी पसंद को लेकर निश्चिंत रहती थी और उस चीज को पाकर भी रहती थी।

न्याय सत्य का साथ देता है-

चीरहरण द्रौपदी का सबसे मुश्किल समय था, लेकिन उसके सत्य और सतित्व के आगे कौरवों के सभी महारथियों को नतमस्तक होना पड़ा और आखिर सत्य की जीत हुई।

धैर्य और विश्वास से जीता महायुद्ध-

कौरव संख्या में पांडवों से कहीं ज्यादा थे,उनके जीतने की संभावना भी इस वजह से ज्यादा थी , लेकिन द्रौपदी को को अपने पतियों के बाहुबल और अपने परिवार की सत्यनिष्ठा पर पूरा भरोसा था, इसलिए बड़े धैर्य के साथ बारह बरस तक इस मौकेे का इंतजार किया।

प्रेम और सुरक्षा का सामंजस्य-

द्रौपदी के जीवन और चरित्र में सबसे बड़ी भूमिका उनके पांच पतियों की थी। अर्जून उसको बेइंतेहा प्यार करता था, तो भीम से उनके जीवन को सुरक्षा का आवरण मिला था, जिससे यह संदेश मिलता है कि प्यार अपनी जगह है, लेकिन एक महिला के लिये सुरक्षा सर्वोपरि है।

अपने अधिकारों की लडाई-

द्रौपदी के मन में अपने वरिष्ठों के लिए बेहद सम्मान था, लेकिन जब बात अपने अधिकारों और मान-सम्मान की आई तो उसने अपने वरिष्ठ लोगों का बड़ी शिष्टता के साथ विरोध किया।

स्वयं पर भरोसा-

द्रौपदी का जीवन संघर्षों और दुखों का समुंदर था। अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में उसको अपने पुत्रों का बिछोह भा सहना पड़ा, लेकिन इसके बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी और अपने सामर्थ्य पर भरोसा करते हुुए पांडवों के साथ मोक्ष की अनन्त यात्रा पर निकल गई।

नाप-तौल कर बोलना-

द्रौपदी के परिहास ने कुरूवंश के इतिहास को हमेशा के लिये बदल कर रख दिया। इंद्रपस्थ के अपने महल में द्रौपदी ने दुर्योधन का परिहास उड़ाया था, इसका परिणाम बहुत भयंकर हुआ और द्रौपदी के दो शब्दों नें महाभारत जैसे विनाशकारी युद्ध की नींव रखी। इसलिए सोच-समझ कर बोलने से कई समस्याओं का समाधान हो जाता है।

विश्वसनीय सखा जरूरी-

द्रौपदी अपने जीवन के हर मोड़ पर श्रीकृष्ण से सलाह लेती थी और उनकी सलाह के अनुरूप काम करती थी यानी जीवन में एक समझदार और विश्वसनीय सलाहकार बेहद जरूरी होता है, जो आपको अपने मुश्किल भरे समय में धैर्य बंधा सके और बेहतर सलाह दे सके।

कुछ मांगने से पहले विचार करे-

द्रौपदी ने कठोर तप कर शिवजी को प्रसन्न किया और शिवजी से वर मांगा कि दुनिया में सबसे श्रेष्ठ धनुर्धर, सबसे बलशाली, सबसे सत्यनिष्ठ, सबसे सुंदर व्यक्ति व्यक्ति से उसका विवाह हो, लेकिन दुनिया में ऐसा कोई इंसान नहीं था इसलिए द्रौपदी को पांच पतियों का वरण करना पड़ा।

 

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