देश का ऐसा अनोखा मंदिर जहाँ मुर्दे भी हो जाते हैं जिंदा, कैसे होता है ये चमत्कार…
दुनिया भर में ऐसे तमाम मंदिर हैं जिनसे कई तरह की मान्यताएं जुड़ी हुई हैं कहीं पर लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं तो कहीं पर लोगों को मन का सुकून मिलता है ऐसे मैं आज हम आपको उत्तर प्रदेश के ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां पर मुर्दों को ले जाने पर उनमें जान आ जाती है।
यह बात सुनने में बेहद ही हैरान करती है लेकिन यहां सालों से ऐसी मान्यता चली आ रही है। यहां के लोग इस मंदिर में बेहद आस्था रखते हैं और सैकड़ों की संख्या में यहां दर्शन करने आते हैं।
यह मंदिर उत्तर प्रदेश के रायबरेली से 15 किलोमीटर की दूरी पर लालूपुर में स्थित है जिसका नाम आस्तीक बाबा मंदिर है, इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि अगर सांप के काटने से किसी की मृत्यु हो जाती है और उसे यहां लाया जाए तो उस मुर्दे के शरीर में फिर से जान आ जाती है और इस मंदिर में उस मरे हुए व्यक्ति को जीवनदान मिल जाता है।
इस मंदिर में कभी आस्तीक मुनि साधना करते थे। इस मंदिर में आज भी वह प्राचीन हवनकुंड मौजूद है जिसमें आस्तीक मुनि हवन किया करते थे।
आमतौर पर मंदिरों में लोग पुष्प चढ़ाते हैं लेकिन इस मंदिर में लोग लकड़ियां चढ़ाते हैं।
ये लकड़ियां मानव आकृति लिए होती हैं। इन्हें आस्तीक मुनि का पहरेदार कहा जाता है। मंदिर में चढ़ाई जाने वाली लकड़ियां काम नाम के पेड़ की होती हैं।
आपको बता दें कि महाभारत काल में जब नागवंशी योद्धा तक्षक ने अर्जुन के पुत्र परीक्षित के प्राण हर लिए तो परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने क्रोधित होकर अनेक नागपुरूषों को बंदी बनाकर आग में जीवित झोंक दिया था। इसे सर्प यज्ञ का नाम दिया गया था।
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उस समय आस्तिक मुनि ने कुछ प्रमुख नागों को बचा लिया था। आस्तिक मुनि ने श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन नागों की रक्षा की थी इसलिए यह दिन नागपंचमी के रूप में मनाया जाने लगा।
आस्तीक मुनि ने जिन सर्पों की जान बचाई थी उन्होंने आस्तीक मुनि को आशीर्वाद दिया कि जहां कहीं भी उनका नाम लिया जाएगा वहां सर्प किसी को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।
कई बार ऐसा भी हुआ है जब लोग सर्प के डसे हुए लोगों को इस मंदिर में लेकर गए हैं और वो ठीक हो गए हैं। यहां हर साल एक मेला लगता है जिसमें सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। इस मंदिर में लोगों की गहरी आस्था है इसी वजह से यहां भक्तों के आने का सिलसिला लगा रहता है।