
2021 में प्रस्तावित हरिद्वार महाकुंभ के लिए भाजपा सरकार उत्साहित है। यह दिलचस्प संयोग है कि उत्तराखंड बनने के बाद दूसरा महाकुंभ भी भाजपा के कार्यकाल में आ रहा है।हिंदुत्व के झंडे को हमेशा बुलंद रखने वाली भाजपा के लिए यह एक ऐसा मौका होगा, जबकि वह हिंदुओं के बडे़ धार्मिक आयोजन में अहम भूमिका निभाने की स्थिति में होगी।
हरिद्वार कुंभ से जुड़ा एक और दिलचस्प तथ्य भी है। अब तक हरिद्वार में राज्य बनने के बाद दो अर्द्धकुंभ हुए हैं और दोनों ही कांग्रेस के शासनकाल में हुए हैं। इस लिहाज से कहें, तो कांग्रेस सरकार को कभी महाकुंभ के आयोजन का मौका नहीं मिला है।
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद हरिद्वार में सबसे पहले कुंभ का अवसर 2004 में आया। यह अर्द्धकुंभ था और प्रदेश में कांग्रेस की एनडी तिवारी सरकार काबिज थी। इसके बाद, वर्ष 2010 में महाकुंभ का मौका आया। प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और सीएम डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक थे।
निशंक सरकार ने इस महाकुंभ में आठ करोड़ लोगों के हरिद्वार में आने का दावा किया था। वर्ष 2016 में हरिद्वार में अर्द्धकुंभ का आयोजन हुआ। प्रदेश में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार ने इस आयोजन के लिए पूरी व्यवस्था की।
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एक बार फिर से हरिद्वार महाकुंभ के लिए तैयार हो रहा है। 2022 की जगह इस बार एक वर्ष पहले यानी 2021 में महाकुंभ का आयोजन प्रस्तावित किया गया है। प्रदेश में भाजपा की त्रिवेंद्र सरकार इसके लिए एक्शन मोड में आ गई है।
जिस तरह से 2019 के चुनाव में हिंदुत्व मुद्दे का उभार रहा और इससे पहले प्रयागराज में कुंभ के आयोजन ने सुर्खियां बटोरी, उसमें हरिद्वार के महाकुंभ भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण आयोजन बनने जा रहा है।