दिवाली की अनोखी परंपराः खेल खेलने में दर्जनों लोग घायल, जानें पूरा तरीका

भोपालः दिवाली सिर्फ भारत में नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में मनाई जाती है। ये बात तो आम है कि त्यौहार में हर किसी देश या समूह का उसे सेलीब्रेट करने का तरीका अलग-अलग होता है। जैसा उस जगह ये वहां के लोगों के लिए सुविधा जनक हो वेसी ही मनाते हैं। ऐसे ही मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में पांच दिवसीय दीपोत्सव की धार्मिक परंपरा से जुड़े हिंगोट युद्ध में सोमवार रात लगभग 40 लोग मामूली तौर पर घायल हो गये।

इस रिवायती जंग के आयोजकों में शामिल एक व्यक्ति ने मंगलवार को “पीटीआई-भाषा” को बताया कि इंदौर से करीब 55 किलोमीटर दूर गौतमपुरा कस्बे में हिंगोट युद्ध के दौरान करीब 40 लोग मामूली रूप से घायल हुए। इनमें से ज्यादातर “योद्धा” घायल होने के बाद घर लौट गये। पुलिस के एक अनुविभागीय अधिकारी (एसडीओपी) ने बताया कि घायलों में शामिल 19 लोग मौके पर लगाये गये चिकित्सा शिविर में पहुंचे, जिन्हें प्राथमिक उपचार के बाद घर जाने की इजाजत दे दी गयी।

अधिकारी ने बताया कि हिंगोट युद्ध के मद्देनजर पुलिस ने प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर जरूरी इंतजाम किये थे। हिंगोट आंवले के आकार वाला एक जंगली फल है। गूदा निकालकर इस फल को खोखला कर लिया जाता है। फिर हिंगोट को सुखाकर इसमें खास तरीके से बारूद भरा जाता है।

नतीजतन आग लगाते ही यह रॉकेट जैसे पटाखे की तरह बेहद तेज गति से छूटता है और लम्बी दूरी तय करता है। गौतमपुरा कस्बे में दीपावली के अगले दिन यानी विक्रम संवत की कार्तिक शुक्ल प्रथमा को हिंगोट युद्ध की धार्मिक परंपरा निभायी जाती है।

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गौतमपुरा के योद्धाओं के दल को “तुर्रा” नाम दिया जाता है, जबकि रुणजी गांव के लड़ाके “कलंगी” दल की अगुवाई करते हैं। दोनों दलों के योद्धा रिवायती जंग के दौरान एक-दूसरे पर हिंगोट दागते हैं। हिंगोट युद्ध में हर साल कई लोग घायल होते हैं और इस पारम्परिक आयोजन में कुछ घायलों की मौत भी हो चुकी है। माना जाता है कि प्रशासन हिंगोट युद्ध पर इसलिये पाबंदी नहीं लगा पा रहा है, क्योंकि इससे क्षेत्रीय लोगों की धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हैं।

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