दशहरा 2021 : यहां नहीं जलता रावण, कुंभकरण और मेघनाथ का पतला, मिलती है श्राप मुक्ति

देश के कोने-कोने में दशहरे के दिन रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले जलाने की परंपरा है। लेकिन देहरादून के जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र के उदपाल्टा गांव में श्राप मुक्ति के लिए 2 बहनों की दूब की घास की प्रतिमाओं के बनाकर जल में विसर्जित करने की परंपरा है।

होता है गागली युद्ध

अष्टमी के दिन रानी और मुन्नी दोनों बहनों की प्रतिमाओं को बनाकर पूजा की जाती है। यहां रावण, कुंभकरण और मेघनाथ का पुतला दहन नहीं होता। दशहरे के दिन जल में विसर्जित किया जाता है। उदपाल्टा गांव में दशहरे के दिन पांइथा पर्व मनाने की परंपरा है। श्राप से मुक्ति पाने के लिए आज भी उदपाल्टा व कुरोली गांव में गागली युद्ध होता है। जिसे देखने आसपास के गांवो से हजारों की संख्या में लोग आते हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार सदियों पहले उदपाल्टा गांव में एक परिवार में 2 सगी बहनें रानी व मुन्नी थीं। जो रोज कुंए से पानी भरने के लिए जाती थी। एक दिन मुन्नी का पैर फिसलने से वह कुंए में गिर गई। जिसके बाद उसकी मौत हो गई। परिजनों ने इसके लिए रानी को जिम्मेदार ठहराया और उसने कुंए में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी। इस घटना के कुछ दिन बाद ही दोनों का श्राप परिजनों को लगने लगा। उसी दिन से श्राप से मुक्ति के लिए उदपाल्टा व कुरोली गांव के लोगों द्वारा बहनों की दूब की घास की प्रतिमाएं बनाकर कुएं में विसर्जित की जाती हैं। उनकी याद में ही दशहरे के दिन पाइंथा पर्व मनाया जाता है। जिसमें दोनों गांवों के लोग गागली युद्ध करते हैं।

उदपाल्टा गांव के लोग बताते हैं कि सदियां गुजर जाने के बाद भी लोग श्रापमुक्ति के लिए यह पर्व मनाते हैं। उन्होंने बताया कि आज भले ही सदियां बीत गई है लेकिन दोनों बहनों के वंशज दो गांवों में विभाजित हो गए हैं। जो हर साल इस कार्य को करते हैं। उनका कहना है कि यह श्रापमुक्ति तब होगी जब दोनों गांवों में एक ही समय पर बेटियां पैदा होंगी।

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