परमात्मा सभी मजबूरियांं मिटा देता है

मोरारी बापू ने कहा कि भगवान शिव की तीन आंखे है। दांयी आंख सत्य की आंख है, बांयी करूणा की आंख है, बीच की आंख प्रेम की आंख है जो अग्निरूपा है। बापू ने मानस प्रेम की रसधार बहाते हुए कहा कि प्रेम एक आग है इसमें उतरकर ही परमात्मा की प्राप्ति संभव है। कौशल्या के घर में परमात्मा थेे इसीलिए वहां पर राम प्रगट हुए।

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प्रेम को उपासना बताते हुए बापू ने कहा कि प्रेम कभी भी वासना नही हो सकता है। आत्मा, मन, बुद्धि, अंहकार, आनन्द जिस प्रकार सभी में होते है वैसे ही प्रेम भी सबमें होता है मगर झूठ के कारण प्रेम प्रगट नही हो पाता है। बापू ने प्रेम के दो रूप बताते हुए कहा कि प्रेम विकृत तथा संस्कृत होता है। विकृत प्रेम में प्रतिशोध की भावना तथा भीषणता होती है जबकि संस्कृवत प्रेम शालीन तथा मर्यादा में सुशोभित होता है।

बापू ने कहा कि आदमी तीन प्रकार के अपराध करता है एक आदतवश, दूसरा अनचाहा तथा तीसरा मुढ़ता के कारण। उन्होने कहा कि अगर आदमी की मानसिकता सत्य की उपासना वाली हो तो परमात्मा सभी मजबूरिया मिटा देता है। असत्य आता है तो प्रेम का प्रवाह अवरूद्व हो जाता है। बापू ने कहा कि पैसा और लक्ष्मी में बडा अन्तर होता है।

ऐसा धन जिसे परसेवा में बाँटने में कष्ट होता हो वो पैसा होता है और ऐसा धन जिसे जनसेवा में खुलकर लगाया जाए वो लक्ष्मी का रूप होता है। बापु ने पर्यावरण को इंगित करते हुए कहा कि हर एक वृक्ष व वनस्पति नारायण का रूप है इसलिए आदमी को खूब पेड़ लगाकर चारों तरफ पेड़ लगाने चाहिए। प्रेम आग है, सूर्य जलाता है पर दूर है, चांद भी शीतलता देता है पर दूर है पर प्रेम हमारे अंदर है। परमात्मा सब जगह समान रूप से व्याप्त है। वह केवल प्रेम से प्रकट हो सकता है।

जो होता है वही प्रकट होता है। कौशल्या के महल में परमात्मा का प्रकटन था इसलिए भय प्रकट कृपाला। प्रेम हम सभी में है जैसे आत्मा, मन, बुद्धि, अहंकार, ज्ञान, आनंद, परमात्मा सब में है। उसी तरह प्रेम भी सब में है। सारा संसार प्रेम से बना है। प्रेम इक्कीस वीं सदी का मूल मंत्र है। उन्होंने चेताया कि यहां प्रेम की वार्ता हो रही है वासना की नहीं, उपासना की चर्चा है।

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