होने वाला है सबसे बड़ा बदलाव, केंद्र के एक कदम से ख़त्म हो जाएंगे ट्रांसजेंडर

ट्रांसजेंडर्स के पक्ष में सिफारिशनई दिल्ली। भारत एक लोकतांत्रिक देश है यहाँ सभी को आज़ादी है कि वह किस तरह से अपना जीवनयापन करता है। सभी समानता, स्वायत्तता के फंडामेंटल राइट्स मिले हैं। लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जिसको ये आज़ादी भी नहीं थी कि वह अपना जेंडर भी चुन सकते। ये वर्ग है ट्रांसजेंडर्स का। जहां पूरे विश्व में उनके हक़ में आवाजें उठने लागी और बहुत से देशों में उनको ये अधिकार मिल चुका है कि वह अपना जेंडर चुन सकते हैं लेकिन भारत में अभी तक ऐसा कोई कानून नहीं था। जिससे इनको ये हक़ मिल सके। इसी के तहत सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट पर बनी पार्लियामेंट की एक स्टैंडिंग कमेटी ने ट्रांसजेंडर्स के पक्ष में सिफारिश की है।

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कमेटी ने कहा है कि ट्रांसजेंडर्स के पास यह अधिकार होना चाहिए कि वह अपना जेंडर आजादी से चुन सकें। उसे सर्जरी या हार्मोंस के जरिए यह ऑप्शन चुनने की आजादी होनी चाहिए। अगर ऐसा होता है तो भारत में भी सिर्फ महिला और पुरुष जेंडर व्यवस्था होगी।

ट्रांसजेंडर पर्संस बिल 2016 में ट्रांसजेंडर को डिफाइन किया गया है। इसके मुताबिक, जो न तो पूरी तरह महिला हो और न ही पूरी तरह पुरुष और जिसका जेंडर जन्म के वक्त बताए गए जेंडर से मेल न खाता हो वह ट्रांसजेंडर है।

कमेटी मानती है कि प्रस्तावित बिल में बताई गई ट्रांसजेंडर की डेफिनेशन बदलती दुनिया के हिसाब से बिल्कुल अलग है। दुनिया में आज ट्रांसजेंडर को खुद तय करने का हक दिया जा रहा है और इस पहचान के तहत उन्हें दिए जाने वाले फायदों की तलाश है।

कमेटी ने कहा, “यह परिभाषा न सिर्फ समानता, गरिमा, स्वायत्तता के फंडामेंटल राइट्स के खिलाफ है, बल्कि ट्रांसजेंडर्स को संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत दी गई आजादी के भी खिलाफ है।”

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स्टैंडिंग कमेटी ने बिल के क्लॉज 2 (c) में बदलाव की भी सिफारिश की है। इसमें ट्रांसजेंडर के लिए समावेशी शिक्षा के बारे में बताया गया है। इस सिस्टम में ट्रांसजेंडर और जेंडर कन्फर्म न होने वाले स्टूडेंट्स और दूसरे स्टूडेंट्स बेखौफ होकर साथ पढ़ते हैं।

कमेटी ने “भेदभाव” की डेफिनेशन को बिल के चैप्टर-1 में शामिल करने की भी सिफारिश की है। उसका मानना है कि इस चैप्टर में वो तमाम वॉयलेशंस शामिल होने चाहिए, जिनका ट्रांसजेंटर सामना करते हैं।

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