इस झील में मछलियों के जगह तैरते हैं सिर कटे इंसान, देखते ही हैरान हो जाएंगे आप
लोगों को घूमना जितना पसंद होता है उससे ज्यादा उस जगह की रोमांचक कहानियाँ लोगों को आकर्षित करती है. हर जगह की अपनी खासियत होती है. ऐसी ही एक जगह उत्तराखंड में है, जो कंकाल झील के नाम से मशहूर है. इसे रुपकुंड झील कहते हैं. वैसे तो यह एक हिम झील है. हर साल जब भी इस कंकाल झील के पास की बर्फ पिघलती है तो यहां कई सौ खोपड़ियां देखी जा सकती हैं.
हिमालय पर करीब 5029 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह कंकाल झील अपने किनारे पाए गए पांच सौ से भी ज्यादा कंकालों की वजह से काफी मशहूर है.
रूपकुंड को रहस्मयी झील के रूप में भी जाना जाता है. झील के चारों ओर ग्लेशियर और बर्फ से ढके पहाड़ हैं.
हर साल कई ट्रैकर्स और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है. रूपकुंड में 12 साल में एक बार होने वाली नंदा देवी राज जात यात्रा में भाग लेने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से यहां आते हैं. इस दौरान देवी नंदा की पूजा की जाती है.
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लोगों के लिए हमेशा कौतूहल का विषय रहा है कि इस झील में इतने सारे कंकाल कहां से आए हैं. इस बारे में कई कहानियां सुनने को मिलती हैं.
कंकाल झील का रहस्य
वैज्ञनिकों का कहना है कि झील के पास मिले लगभग 200 कंकाल नौवीं सदी के भारतीय आदिवासियों के हैं, जो ओले की आंधी में मारे गए थे. इन कंकालों को सबसे पहले साल 1942 में ब्रिटिश फॉरेस्ट गार्ड ने देखा था.
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शोध के मुताबिक, कंकाल मुख्य रूप से दो समूहों के हैं. इनमें से कुछ कंकाल एक ही परिवार के सदस्यों के हैं, जबकि दूसरा कद में छोटे लोगों का है. शुरुआत में माना जा रहा था कि यह नर कंकाल उन जापानी सैनिकों के थे जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इस रास्ते से गुजर रहे थे. लेकिन अब वैज्ञानिकों की मानें तो ये कंकाल 850 ईसवी में यहां आए श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों के हैं