जेल के अन्दर से भी राजनीति का केंद्र बने हुए हैं लालू प्रसाद यादव

जब भी बिहार का नाम जुबां पर आता है तो सबसे पहला आदमी जो याद आता है वो है लालू प्रसाद यादव| इस बार बिहार में चुनाव तो आ रहे हैं पर ये चुनाव इस बार लालू के बिना ही होंगे|

आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को बिहार की सियासत का बेताज बादशाह तक कहा जाता है लेकिन वो फिलहाल जेल में बंद हैं| इलाज के चलते उन्हें रांची के रिम्स में लाया गया है|

जिसके चलते लालू यादव बिहार की चुनावी महासंग्राम में न तो उतरेंगे और नहीं उनकी आवाज सुनाई सुनाई देगी| पिछले चार दशक की राजनीतिक में पहली बार होगा जब लालू यादव के बिना बिहार का चुनावी संग्राम होगा|

1970 के दशक में लालू यादव अपना सियासी सफर जीरो से शुरू किया और सड़क से संसद तक संघर्ष कर बिहार के दलितों-पिछड़ों और वंचितों की आवाज बन गए. 15 साल तक बिहार की सत्ता पर काबिज रहने के बाद लालू को 2005 के राज्य विधानसभा चुनाव में जबरदस्त झटका लगा. लेकिन मोदी के केंद्र में राजनीतिक उदय होने के बाद लालू अपने पुराने तेवर में नजर आए.

2014 में हार से हताश विपक्ष को लालू ने जीत का फॉर्मूला दिया. बिहार में लालू ने नीतीश के साथ मिलकर महागठबंधन का निर्माण किया. बिहार में यह राजनीतिक समीकरण मोदी-शाह पर भारी पड़ा और इसने महाबंधन के पक्ष में वोटों की बरसात कर दी. इससे बीजेपी की जीत का सिलसिला ही नहीं थमा बल्कि विपक्ष में एक उम्मीद जगी कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को हराया जा सकता है. लालू ने एक बार फिर जता दिया कि सियासी दांवपेच में उनका कोई जोड़ नहीं है.

बिहार की सियासत के 40 साल में पहली बार है कि लालू प्रसाद यादव चुनावी रणभूमि में नजर नहीं आ रहे हैं. लालू की अनुपस्थित में आरजेडी की बागडोर उनके बेटे और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव संभाल रहे हैं. लेकिन उनके लिए सबसे बड़ा सिरदर्द उनके बड़े भाई तेज प्रताप बने हुए हैं.

आरजेडी नेता व राज्यसभा सदस्य मनोज झा ने आजतक से बातचीत करते हुए कहा, ‘लालूजी के बिना बिहार ही नहीं बल्कि उत्तर भारत में चुनाव की परिकल्पना नहीं की जा सकती है. सच है कि आरजेडी के लिए उनकी अनुपस्थिति मायने रखती है, लेकिन उनकी अनुपस्थिति किन वजहों, किन लोगों और किन साजिशों से है, यह चीज ज्यादा महत्व रखती है. ऐसे में जाहिर है कि चुनाव के दौरान लोग अपने नेता को अपने बीच देखना चाहते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. सत्तापक्ष की ओर से पूरी कोशिश की गई कि लालूजी चुनाव में मौजूद न रहें. बिहार का जनता इसका मुंहतोड़ जवाब देने का मन बना चुकी है.’

बिहार की राजनीति को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु मिश्रा कहते हैं कि लालू यादव भले ही जेल में हों, लेकिन मिथक के तौर पर अभी भी बिहार की सियासत में मौजूद हैं. जेल में रहते हुए लालू ने जिस तरह से दलों को जोड़कर गठबंधन और सीटों का बंटवारा किया. इससे साफ है कि लालू अपनी अनुपस्थिति में भी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रहे. इसीलिए लालू के कमरे की तलाशी की गई.

उन्होंने कहा कि लालू के जेल में रहने से बस यही गलत संदेश जा रहा है कि परिवार नहीं संभल रहा है. राजनीतिक विरासत के लिए दोनों बेटे आमने-सामने हैं. ऐसे में अगर लालू बाहर होते तो परिवार में इस तरह से कलह सामने न आती.

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इसके अलावा सीपीआई से जो गठबंधन नहीं हो सका, उसे वो सुलझा लेते. जेल में रहते हुए इस मायने में नुकसान रहा है. इसके अलावा जेल में रहने से जिस वर्ग में सहानुभूति है वह वर्ग हमेशा से उनके साथ रहा है. मोदी लहर के बावजूद आरजेडी का 20 फीसदी से ज्यादा वोट रहा है, ऐसे में लालू के जेल में रहने से आरजेडी के यादव और मुस्लिम में वोटिंग प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हो सकती है.

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