देश के सबसे बड़े दलित नेताओं के ज़िक्र में पहला नाम डॉ. भीमराव अंबेडकर का आता है. पर एक और नेता भी था, जो देश की आज़ादी के साथ ही दलित राजनीति का पोस्टर बॉय बन गया था. इस नेता के नाम पर लगातार 50 साल तक देश की संसद में बैठने का रिकॉर्ड है.
बतादें की इस नेता के नाम सबसे ज़्यादा बरस तक कैबिनेट मंत्री बने रहने का रिकॉर्ड है. जहां इस नेता के बारे में ईस्टर्न कमांड के लेफ्टिनेंट जैकब ने अपने मेमोराइट्स में लिखा है कि भारत को इनसे अच्छा रक्षामंत्री कभी नहीं मिला. ये नेता दो बार प्रधानमंत्री पद की कुर्सी के सबसे करीब पहुंचने के बाद भी उस कुर्सी पर नहीं बैठ पाया.
वहीं बाबू जगजीवन राम का ज़िक्र इसलिए, क्योंकि 6 जुलाई , 1986 को इनका देहांत हुआ था. 5 अप्रैल, 1908 को बिहार के भोजपुर में जन्मे जगजीवन डॉ. अंबेडकर को कांग्रेस का जवाब थे. 1946 की अंतरिम सरकार में पंडित नेहरू ने इन्हें लेबल मिनिस्टर बनाया था, जो उस कैबिनेट के सबसे कम उम्र के सदस्य थे. संसद में बैठने का इनका क्रम 6 जुलाई 1986 को देहांत के साथ ही खत्म हुआ.
जगजीवन राम जब आरा में रहते हुए हाईस्कूल की पढ़ाई कर रहे थे, तब इन्होंने एक दिन स्कूल के घड़े से पानी पी लिया. ये वो दिन थे, जब स्कूलों, रेलवे स्टेशनों या बाकी सार्वजनिक जगहों पर पानी के दो घड़े (स्रोत) रखे जाते थे. एक हिंदुओं के लिए और दूसरा मुस्लिमों के लिए. जगजीवन के पानी पीने पर प्रिंसिपल के पास ये शिकायत पहुंची कि एक अछूत लड़के ने हिंदू घड़े से पानी पी लिया है.
खबरों के मुताबिक प्रिंसिपल साहब भी ऐसे कि उन्होंने स्कूल में तीसरा घड़ा रखवा दिया. ये तीसरा घड़ा दलितों के लिए था. जगजीवन राम ने वो घड़ा तोड़ दिया. नया घड़ा रखवाया गया, तो जगजीवन ने उसे भी तोड़ दिया. तब जाकर प्रिंसिपल को अक्ल आई और उन्होंने समाज के कथित अछूतों के लिए अलग से घड़ा रखवाना बंद कर दिया.
इस किस्से की शुरुआत भी आरा के स्कूल से ही होती है. एक बार इनके स्कूल के एक कार्यक्रम में शामिल होने आए पंडित महामना मदन मोहन मालवीय. वही मालवीय, जिन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. जगजीवन ने मालवीय के स्वागत में एक भाषण दिया. मालवीय इस भाषण से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने जगजीवन को BHU में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया.
दरअसल जगजीवन BHU पहुंचे, तो वहां दो चीज़ों ने उनका स्वागत किया. पहली बिड़ला स्कॉलरशिप और दूसरा वहां का भारी भेदभाव. उन्हें कक्षा में दाखिला मिल गया था, लेकिन समाज में बराबरी नहीं मिली थी. मेस में बैठने की इजाज़त थी, लेकिन कोई उन्हें खाना परोसने को राजी नहीं था. पूरे बनारस में कोई नाई उनके बाल काटने को राजी नहीं था. ऐसे में गाजीपुर से एक नाई उनके बाल काटने बनारस आता था.