नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में गुजरात की 26 सीटों पर 23 अप्रैल को मतदान है। मतदान से पहले यहां चुनाव प्रचार थम गया है लेकिन राज्य में एक गांव ऐसा भी है जहां कोई नेता प्रचार के लिए नहीं जाता है। जहां राजकोट जिले के राजसमढियाल गांव का नियम है कि किसी भी चुनाव में कोई भी नेता यहां प्रचार करने नहीं आ सकता।
बता दें की इसका मतलब यह नहीं है कि यहां लोग चुनाव का बहिष्कार करते हैं बल्कि लोगों का मानना है कि नेताओं के प्रचार के गांव का माहौल खराब होता है। गांव के सरपंच अशोक भाई भी इसकी पुष्टि करते हैं और यही कारण है कि जहां देशभर में चुनावी रैलियां हो रही हैं, वहीं इस गांव में कोई चुनावी शोर सुनाई नहीं देता।
देखा जाये तो राजसमढियाल की इस अनोखी परंपरा की जानकारी देते हुए सरपंच अशोक भाई वाघेला बताते हैं कि जब हरदेव सिंह सरपंच बने तब से ही गांव में नेताओं के चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
लेकिन यह बैन सिर्फ सरपंच ने नहीं लगाया बल्कि गांव वाले भी इसके समर्थन में हैं। इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि यहां लोगों का मानना है कि गांव में चुनाव प्रचार से यहां का माहौल खराब हो जाता हैं।
खबरों के मुताबिक राजसमढियाल की इस अनोखी परंपरा की जानकारी देते हुए सरपंच अशोक भाई वाघेला बताते हैं कि जब हरदेव सिंह सरपंच बने तब से ही गांव में नेताओं के चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
वहीं यह बैन सिर्फ सरपंच ने नहीं लगाया बल्कि गांव वाले भी इसके समर्थन में हैं। इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि यहां लोगों का मानना है कि गांव में चुनाव प्रचार से यहां का माहौल खराब हो जाता है।
दरअसल वोटर लिस्ट में ऐसे भी लोगों के नाम हैं जो मर चुके हैं या उन लड़कियों के नाम भी शामलि हैं जिनकी शादी हो गई है और वे कहीं और चली गई हैं। फिर भी यहां वोटिंग प्रतिशत 95 से 96 प्रतिशत तक रहता है।
वैसे यह गांव सिर्फ इसी वजह से चर्चा में नहीं रहता। यह गुजरात का ऐसा आदर्श गांव है जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां कोई भी अपने घर या दुकान में ताला नहीं डालता हैं।
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