जानिए अगर रमा देवी ने सदन में आजम खान की माफी को नही स्वीकारा तो…

लोकसभा में पीठासीन महिला सांसद रमा देवी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करके आजम खान मुश्किलों में घिर गए हैं. रमा देवी ने साफ कहा है कि वो सपा सांसद आजम की माफी से संतुष्ट नहीं होंगी, जबकि माना जा रहा है कि सभी पार्टियों द्वारा अधिकृत होने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला सपा सांसद आजम खान को माफी मांगने को कहेंगे.

 

बतादें की रमा देवी लोकसभा अध्यक्ष की आजम खान पर कार्रवाई से संतुष्ट नहीं हुईं और इस मामले को सदन के बाहर ले गईं, तो पहले से मुश्किलों में घिरे आजम खान एक नई मुसीबत में फंस सकते हैं और आजम खान के खिलाफ बड़ा एक्शन हो सकता है.

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जहां उनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई भी की जा सकती है. लेकिन वो संसदीय विशेषाधिकारों की आड़ में न तो किसी के मौलिक अधिकारों का हनन कर सकते हैं और न ही कोई क्राइम कर सकते हैं.

वहीं देखा जाये तो संविधान विशेषज्ञ डीके दुबे और लॉ के प्रोफेसर डॉ राजेश दुबे का कहना है कि संसद के अंदर किसी मामले पर कार्रवाई करने और फैसला लेने का अधिकार पीठासीन अधिकारी यानी लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति को होता है.

जहां संविधान के अनुच्छेद 122 में प्रावधान है कि संसद की कार्यवाही पर न्यायालय में सवाल नहीं उठाया जा सकता है, लेकिन इसकी आड़ में संसद कोई असंवैधानिक कार्य नहीं कर सकती है.

डॉ राजेश दुबे और डीके दुबे का कहना है कि यहां पर पहली बात यह है कि लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिड़ला को आजम खान के खिलाफ एक्शन लेने का अधिकार है. इसके अलावा लोकसभा अध्यक्ष मामले में पुलिस कार्रवाई का भी निर्देश दे सकते हैं.

लेकिन अगर पुलिस को आजम खान के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार दिया जाता है, तो उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 294, 509 और 354A के तहत कार्रवाई की जा सकती है. ऐसे में उनको तीन साल तक की जेल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है.

इसके अलावा लोकसभा अध्यक्ष की इजाजत से पुलिस आजम खान के खिलाफ कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़न अधिनियम 2013 के तहत भी कार्रवाई कर सकती है. इस संबंध में लोकसभा अध्यक्ष का फैसला अहम है.

डॉ राजेश दुबे और डीके दुबे का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 122 में भले ही संसद को विशेषाधिकार मिला हो, लेकिन संसद किसी सांसद के मौलिक अधिकारों के हनन पर इसकी आड़ नहीं ले सकता है. संविधान की उद्देश्यिका में भी साफ किया गया है कि भारत के जनता सर्वोच्च है और जनता ने संविधान को अंगीकृत किया है. इसका मतलब यह हुआ कि संविधान को जनता से शक्ति मिली है और संसद व सरकार को संविधान से.

दरअसल अगर संसद या सरकार संविधान या उसकी भावना के खिलाफ कोई काम करते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट उनको असंवैधानिक घोषित कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि संविधान में सभी नागरिकों को मूल अधिकार मिले हुए हैं, जिनकी रक्षा करना सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी है.

जहां इसका मतलब यह हुआ कि संसद के किसी भी फैसले, कार्यवाही या कानून की सुप्रीम कोर्ट समीक्षा कर सकता है. अगर संसद का कोई फैसला, कार्यवाही या कानून किसी के मौलिक अधिकारों का हनन करता है, तो सुप्रीम कोर्ट दखल दे सकता है.

 

 

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