छत्तीसगढ़ की इस महिला का राजनीति में है अलग की रसूख, लोग मानते हैं मसीहा….

1913 में असम के नगांव जिले में जन्मी मिनाक्षी बड़ी होकर पूरे देश में ‘मिनीमाता’ के नाम से जानी जाएंगी, ऐसा किसी ने नहीं सोचा होगा। जीवन में विपरीत परिस्थितियों से निरंतर मजबूती के साथ लड़ते हुए मिनाक्षी मिनीमाता के रूप में पूरे देश और खास कर छत्तीसगढ़ के लोगों की मसीहा बनीं।

मिनीमाता छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद थीं। समाज में पिछड़ापन और छुआछूत जैसी तमाम कुरीतियों को दूर करने के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।

अजब गजब

बिल्कुल सामान्य और मध्मवर्गीय परिवार से होने के कारण छत्तीसगढ़ के लोगों के साथ उनके आत्मीय संबंध बन गए थे। राज्य की जनता मिनीमाता को राजमाता जैसा सम्मान देती थी।

छत्तीसगढ़ के लोग मिनीमाता से इतना प्यार करते हैं कि आज भी प्रदेश सरकार उनके सम्मान में हर वर्ष महिलाओं के विकास के क्षेत्र में काम करने वालों को ‘मिनीमाता सम्मान’ देती है। छत्तीसगढ़ का विधानसभा भवन भी उनके नाम पर ही बना है।

मिनीमाता 1952, 1957, 1962, 1967 और 1971 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर सांसद चुनी गई थीं। अपने कार्यकाल में उन्होंने समाज हित के लिए कई काम किए। वो छत्तीसगढ़ मजदूर कल्याण संगठन, भिलाई की संस्थापक थीं।

जब वो सांसद के रुप में दिल्ली में रहती थीं तो उनका वास स्थान एक धर्मशाला जैसा था। मिनीमाता को हिंदी, छत्तीसगढ़ी और अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान था।

उन्होंने संसद में अस्पृश्यता बिल को पास कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, साथ ही बाल विवाह, दहेज प्रथा, गरीबी और अशिक्षा दूर करने के लिए भी आवाज उठाती रहीं। अनाथ व पीड़ितों की सेवा करना उनके जीवन का प्रमुख लक्ष्य था।

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1971 में उन्होंने जांजगीर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीता। अगले साल 11 अगस्त को अचानक हुई विमान दुर्घटना के कारण छत्तीसगढ़ की जनता के बीच गहरा मातम पसर गया। इस विमान दुर्घटना में उनकी जान चली गई।

किसे पता था कि भोपाल से दिल्ली के लिए रवाना हुईं उनकी मसीहा मिनीमाता दोबारा कभी लौट कर नहीं आएंगी।

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