चुनाव हारने के बाद भी कैसे सीएम बनेगी ममता बनर्जी? यह है एकमात्र रास्ता

बीजेपी के भर्सक प्रयास के बावजूद भी ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की लगातार तीसरी बार सत्‍ता में वापसी कराई लेकिन इस दौरान उन्‍होंने नंदीग्राम की अपनी विधानसभा सीट गंवानी पड़ी। एक समय ममता के विश्‍वस्‍त सहयोगी रहे और अब बीजेपी प्रत्‍याशी शुभेंदु अधिकारी ने हराकर हर किसी को हैरान कर दिया। शुभेंद्र ने नंदीग्राम की प्रतिष्‍ठापूर्ण सीट पर शुरुआत से ही ममता के खिलाफ बढ़त बरकरार रखी और आखिर बारीक अंतर से जीत हासिल की। ममता की हार से बेशक तृणमूल कांग्रेस समर्थक निराश हैं। यह भी सही है कि ‘दीदी’ की इस हार ने विधानसभा चुनाव में 200 से अधिक सीटों पर मिली प्रभावी जीत की खुशी को फीका कर दिया है लेकिन चुनाव में हारने के बाद भी ममता के सीएम बनने की राह में कोई बाधा नहीं है। संवैधानिक व्‍यवस्‍था के अनुसार, अपनी सीट हारने के बाद और विधानसभा की सदस्‍य नहीं होने के बाद भी सीएम बन सकती हैं।

उद्दाहरण के तौर पर देखा जाए तो ऐसे कुछ सीएम रहे हैं मुख्‍यमंत्री बनते समय अपने राज्‍य की विधानसभा के सदस्‍य नहीं थे। बिहार के नीतीश कुमार तीन दशक से अधिक समय से विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है। पिछले साल नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में भी वे प्रत्‍याशी नहीं थे। महाराष्‍ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने भी चुनाव नहीं लड़ा है। ये दोनों विधानपरिषद के सदस्‍य हैैं। बिहार और महाराष्‍ट्र में विधानसभा और विधान परिषद के रूप में दो सदन है लेकिन बंगाल में विधान परिषद की सुविधा नहीं है, ऐसी स्थिति में ममता को मुख्‍यमंत्री पद संभालने के बाद छह महीने के अंदर विधानसभा सदस्‍य बनना होगी। वे खाली की गई किसी सीट पर हुए उपचुनाव में जीत हासिल कर या ऐसी सीट, जहां किसी कारण से चुनाव नहीं हो पाया है, से चुनाव लड़कर और जीत हासिल करके सदन की सदस्‍य बन सकती हैं। संविधान का अनुच्‍छेद 164 कहता है कि एक मंत्री, जो विधायक नहीं है, को छह माह में इस्‍तीफा देना होगा। ममता छह माह की समय सीमा में किसी विधानसभा सीट पर चुनाव लड़कर और जीत हासिल कर सकती हैं।

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