चीन की लाख कोशिशों और अरबों खर्च करने के बाद भी पाकिस्तान बर्बादी की कगार पर !

जब 2015 में चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का ऐलान हुआ था तो पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इसे देश के लिए ‘गेमचेंजर’ बताया था.परियोजना शुरू होने के 4 साल बीत चुके हैं और भारी-भरकम कर्ज, घरेलू राजस्व की कमी व भुगतान संकट से जूझ रहे पाकिस्तान में सीपीईसी के लिए उत्साह ठंडा पड़ चुका है.

विश्लेषकों का कहना है कि जब तक पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर नहीं कर लेता है और विदेशी निवेश आकर्षित करने में कामयाब नहीं होता है तब तक सीपीईसी से देश की किस्मत बदलने का ख्वाब, ख्वाब ही रह जाएगा.

सीपीईसी परियोजना 15 साल (2015-30) के लिए बनाई गई थी जिसमें मूलभूत ढांचा व बिजली से जुड़ी तमाम योजनाएं शामिल हैं.

2018 तक 22 परियोजनाओं पर 18 अरब डॉलर खर्च हो चुके हैं जिनमें से 10 पूरी हो चुकी हैं. इन 10 परियोजनाओं में से सात बिजली और तीन सड़क निर्माण से जुड़ीं योजनाएं शामिल हैं.

पूरी हो चुकी बिजली परियोजना से पाकिस्तान की बिजली उत्पादन की क्षमता में 4000 मेगावाट का इजाफा हुआ है लेकिन इसका कोई फायदा नहीं है.

पाकिस्तान की ट्रांसमिशन लाइन्स की क्षमता 3000 मेगावाट कम है. चीनी परियोजनाओं से पैदा हुई बिजली बहुत महंगी भी है क्योंकि चीनी कर्ज, ट्रांसमिशन, बिजली चोरी और परियोजना में काम कर रहे चीनी नागरिकों की सुरक्षा में पाकिस्तान को भारी-भरकम लागत अदा करनी पड़ रही है.

 

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सीपीईसी परियोजना के सबसे महत्वपूर्ण ग्वादर बंदरगाह का उद्घाटन नवंबर 2016 में किया गया था लेकिन अभी तक इससे भी बहुत ज्यादा राजस्व हासिल नहीं हो सका है.

इसकी दो वजहें हैं- क्षेत्र में मौजूद दूसरे बंदरगाह और औद्योगिक ढांचे की कमी. समझौते के मुताबिक, इस बंदरगाह से हासिल होने वाले कुल राजस्व का 91 फीसदी अगले 40 वर्षों तक चीन को दिया जाएगा.

कई तेल विश्लेषकों ने ग्वादर बंदरगाह से चीन के तियानजिन तक तेल और गैस के परिवहन के लिए बनाई गई 7000 किमी लंबी पाइपलाइन की आर्थिक व्यावहारिकता पर भी संदेह जाहिर किया है.

इस मार्ग से प्रति बैरल तेल ढुलाई की कीमत करीब 10 डॉलर होगी जो बहुत ज्यादा है. यह पाइपलाइन अस्थिर बलूचिस्तान और चुनौतीपूर्ण भौगोलिक क्षेत्र से होकर गुजरेगी.

सबसे बड़ी भौगोलिक चुनौती ये है कि तेल और गैस को ग्वादर के समुद्री स्तर से खुंजेरब पास पर 15,400 फीट की ऊंचाई से होकर ले जाना होगा.

विश्लेषकों का मानना है कि निर्माण और रखरखाव की ज्यादा लागत इस मार्ग की लोकप्रियता घटा देगी जिससे राजस्व भी कम आएगा. पाकिस्तान इन योजनाओं के राजस्व से चीन का कर्ज भी चुका पाएगा, ये भी फिलहाल मुश्किल ही लगता है.

 

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