असम सबसे बड़ी चाय संस्था ने ‘चायवाला’ मोदी से वादा निभाने को कहा

गुवाहाटी। असम की सबसे बड़ी चाय संस्था ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर राज्य के ‘चाय बागान मजदूरों की दुर्दशा पर ध्यान नहीं देने’ को लेकर निशाना साधा और उनसे नए साल की शुरुआत से पहले 350 रुपये न्यूनतम मजदूरी के वादे को लागू करने का आग्रह किया। मोदी अक्सर खुद को ‘चायवाला’ कहकर संबोधित करते हैं। असम चाह मजदूर संघ (एसीएमएस) के महासचिव रुपेश गोवाला ने कहा कि मोदी अक्सर खुद को ‘चायवाला’ कहते हैं जबकि उन्होंने राज्य के चाय बागानों में काम कर रहे 10 लाख मजदूरों से किए गए वादे को बीते चार साल में पूरा नहीं किया है।

गोवाला ने कहा, “2014 के लोकसभा चुनाव से पहले, मोदी ने असम में कई रैलियां संबोधित की थीं और चाय बागान मजदूरों को आश्वस्त किया था कि उन्हें प्रतिदिन कम से कम 350 रुपये का भुगतान किया जाएगा।”

असम की ब्रह्मपुत्र घाटी के चाय बागान मजदूरों को वर्तमान में 167 रुपये प्रतिदिन जबकि बराक घाटी के चाय बागान मजदूरों को 145 रुपये की दिहाड़ी मिल रही है।

उन्होंने कहा, “असम सरकार और एसीएमएस व अन्य चाय मजदूर इकाईयों के बीच मौजूदा मजदूरी समझौता 31 दिसंबर 2017 को समाप्त हो चुका है।”

गोवाला ने कहा, “सरकार ने 30 रुपये प्रति दिन की अंतरिम वृद्धि की घोषणा की थी। चाय बागान मजदूरों को यह अंतरिम वृद्धि 1 जनवरी 2018 से मिलनी थी लेकिन सरकार कह रही है कि यह बढ़ोत्तरी एक मार्च 2018 से लागू होगी।”

उन्होंने कहा, “इससे उन्हें दो महीने के लिए प्रतिदिन 30 रुपये का नुकसना होगा।”

गोवाला ने कहा कि असम में भारतीय जनता पार्टी नीत सरकार ने अभी न्यूनतम मजदूरी तय नहीं की है। उन्होंने मोदी से 2019 से पहले न्यूनतम मजदूरी 350 रुपये प्रतिदिन करने के वादे पर अमल करने का आग्रह किया।

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गोवाला ने कहा कि असम सरकार द्वारा चलाए जा रहे सभी चाय बागानों की हालत और भी खराब है।

उन्होंने कहा, “कंपनी के स्वामित्व वाले बागानों में मजदूरों को वर्तमान में 167 रुपये प्रतिदिन मिल रहे हैं जबकि राज्य सरकार के स्वामित्व वाली असम टी कंपनी लिमिटेड (एटीसीएल) के अंतर्गत 14 बागानों के 26 हजार मजदूरों को प्रतिदिन केवल 115 रुपये ही मिल रहे हैं।”

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असम में 800 से ज्यादा मध्यम और बड़े आकार के चाय बागान है, जिसमें देश के कुल चाय उत्पादन का 50 फीसदी से ज्यादा उत्पादन होता है।

गोवाला ने कहा कि असम के चाय मजदूर बहुत ही दयनीय स्थिति में जी रहे हैं।

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