गुरु पूर्णिमा के दिन इस तरह से करें पूजा-पाठ, सदा मिलेगा गुरु का आशीर्वाद

सभी की जिंदगी में कोई ना कोई गुरु जरुर होता है। साथ ही गुरु का जिंदगी में एक विशेष मान-सम्मान होता है। अपने गुरुओं को सम्मान देने के लिए के लिए गुरु पूर्णिमा का विशेष पर्व मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार आज यानी कि 16 जुलाई को मनाय जा रहा है।

गुरु पूर्णिमा

इस दिन हमें ज्ञान देने वाले और हमारे मार्गदर्शक गुरुओं की पूजा की जाती है। वैसे तो हिंदू धर्म में हर महीने पूर्णिमा आती है लेकिन आषाढ़ मास में आने वाली इस पूर्णिमा का खास महत्व होता है। क्योंकि शास्त्रों अनुसार ऐसा बताया गया है कि इस दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। जिन्होंने महाभारत की रचना की थी इतना ही नहीं उन्होंने 18 पुराओं की भी रचना की। वेदों को विभाजित किया। जिस कारण इनका नाम वेद व्यास प्रसिद्ध हुआ। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। यहां जानें इस दिन कैसे करें गुरुओं की पूजा और व्रत कथा।

पूजा की विधि – इस दिन का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद व्यास जी के चित्र को फूल या माला चढ़ाकर अपने गुरु के पास जाना चाहिए। और उन्हें आसन पर बैठाकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए। फिर अपने गुरु के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लें। यदि आपके गुरू आपके पास नहीं है तो उनकी तस्वीर के सामने सिर झुकाकर उनकी पूजा करें। इस दिन अपने गुरु को वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। गुरु से मन्त्र प्राप्त करने के लिए भी इस दिन को उत्तम माना गया है। साथ ही इस दिन गुरुओं की सेवा करनी चाहिए।

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 क्यों कहते हैं व्यास पूर्णिमा: गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भा जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह दिन महर्षि व्यास का जन्म हुआ था। ऋषि वेदव्यास जी ने मानव कल्याण के लिए वेदों को विभाजित करके उन्हें सरल बनाया। जिस कारण इनका नाम वेद व्यास प्रसिद्ध हुआ। माना जाता है कि इनका बचपन का नाम कृष्णद्वैपायन था। इनकी माता मछुआरे की पुत्री सत्यवती और पिता ऋषि पराशर थे। महाभारत काल में मां के कहने पर महर्षि वेदव्यास ने विचित्रवीर्य की रानियों और एक दासी के साथ नियोग किया। जिसके बाद पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर का जन्म हुआ। व्यासजी ने 6 शास्त्रों और 18 पुराणों की रचना की। और इसी तिथि पर व्यासजी ने सबसे पहले अपने शिष्यों और मुनियों को शास्त्रों का ज्ञान भी दिया। इसी कारण गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। कई लोग इस दिन व्यास जी के चित्र का पूजन कर उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं।

 

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