गणेश चतुर्थी : आज अपनाए ये उपाय, होगी धन संपदा की वर्षा

गणेश चतुर्थीगणेश चतुर्थी हिन्दू धर्म का एक बहुत प्रिय पर्व है। पूरे भारत में ये उत्सव बेहद भक्तिभाव और खुशी से मनाया जाता है। इस पर्व को भगवान गणेश के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाता है जो माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र है। ये बुद्धि और समृद्धि के भगवान है इसलिये इन दोनों को पाने के लिये लोग इनकी पूजा करते है। भगवन गणेश की उपासना करके आप भी अपने लिए उन्नति के द्वार खोल सकते हैं।

गणेश चतुर्थी पर करें उपासना

गणेश चतुर्थी के दिन लोग सुबह जल्दी ही स्नान कर लेते है, साफ कपड़े पहन कर भगवान की पूजा करते है। वो मंत्रोच्चारण, आरती गाकर, हिन्दू धर्म के दूसरे रिती-रिवाज निभाकर, भक्ति गीत गाकर भगवान को बहुत कुछ चढ़ाते है और प्रार्थना करते है।

बिना बुद्धि के अगर अपार धन की प्राप्ति हो जाए, तो भी वह निरर्थक साबित होती है। धन का धर्म-सम्मत व्यय तभी माना जाता है, जब उसको सोच-समझ कर खर्च किया जाए।

धन आने पर अच्छे भले आदमी का विवेक भी समाप्त हो जाता है। गणेश जी बुद्धि के स्वामी हैं, विवेकशील है। लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन असल में धन प्राप्ति में किसी भी तरह की विघ्न-बाधा को रोकने के लिए ही किया जाता है। फिर गणेश जी वैध तरीके से धन प्रदान करवाते हैं।

विघ्न चाहे धन का हो, घर में क्लेश का या कोई और, गणेश जी तत्काल बुद्धि देकर समस्या का निवारण करते हैं। परिवार की धुरी गृहलक्ष्मी ही होती है। विवाह के पश्चात स्त्री को गृहलक्ष्मी कहा जाता है, क्योंकि लक्ष्मी जी का सोलहवां अंश उसमें रहता हैं।

लक्ष्मी उसी के पास लंबे समय तक टिकती हैं, जिसके पास बुद्धि होती है। गणेश जी बुद्धि के स्वामी होने के कारण इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

महाभारत में लिखा है- ‘षड् दोषा: पुरुषेणोह हातव्या भूतिमिच्छता। निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता॥’ यानी उन्नति की कामना करने वालों को निद्रा, तन्द्रा, भय, क्रोध, आलस्य और दीर्घसूत्रता (काम को टालने वाली प्रवृत्ति) का त्याग करना चाहिए।

यह सत्य है कि इन छह दोषों से दूर रहने वाला ही लक्ष्मी प्राप्त कर सकता है। अधिक नींद लेने वाला लक्ष्मी जी को पसंद नहीं है। ऊंघते रहना कर्म और सफलता में बड़ी बाधा पैदा करता है। व्यक्ति के आत्मविश्वास को भय भी हानि पहुंचाता है। क्रोध व्यक्ति के अच्छे गुणों का नाश कर डालता है।

आलसी आदमी किसी भी अच्छे काम को पूरा करने में असमर्थ रहता है। एक सबसे खराब आदत है किसी भी काम में विलंब करना या बहुत देरी करना। गणेश जी की पूजा से यह छह दोष अपने आप समाप्त हो जाते हैं।

पुराणों में कहा गया है- जहां माता-पिता, सास-ससुर, पितर, देवगण, गुरुओं और मेहमानों को प्रसन्नता नहीं होती, जहां झूठ बोलने वाले, झूठी गवाही व कसम खाने वाले होते हैं, वहां लक्ष्मी जी निवास नहीं करतीं। यहीं गणेश जी की भूमिका शुरू होती है।

गणेश जी शोक का नाश करने वाले हैं, आनंद के देवता हैं, सकारात्मक सोच प्रदान करते हैं। फिर लक्ष्मीजी के मानस पुत्र भी हैं गणेश जी। दीपावली पर गणोशजी के दाएं माता लक्ष्मी विराजमान रहती हैं। ज्योतिष की दृष्टि से देखें तो गणेश जी और लक्ष्मीजी दोनों ही की राशि तुला है, इसलिए वे संतुलित व्यवहार पसंद करते हैं।

 

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