
भारत एक ऐसा देश है जहां आपको कदम-कदम पर विविधता के साथ-साथ कुछ ऐसी अजीबोगरीब चीजें भी देखने को मिल जाएगी जिस पर यकीन करना कई बार बहुत मुश्किल हो जाता है।
हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि कुछ प्राचीन मान्यताओं पर आज भी लोगों का विश्वास बरकरार है।
आज हम आपको एक ऐसी ही अजीबोगरीब गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जहां लोग वनवास जाते हैं और इस दौरान अपने घरों के दरवाजें पर ताला भी नहीं लगाते हैं।
बिहार के पश्चिम चंपारण में बगहा जिले की नौरंगिया दरदरी पंचायत में स्थित इस गांव का नाम नौरंगिया है। यहां करीब 200 वर्षों से चली आ रही एक अजीबोगरीब परंपरा का पालन आज भी किया जाता है।
इस गांव में करीब 800 घर है और प्रत्येक घर का हर एक सदस्य को साल में एकबार वनवास जाना पड़ता है।
जी हां, वैशाख माह में जानकी नवमी के दिन सभी गांववासी वनदेवी की पूजा करने के लिए जंगल चले जाते हैं। जहां उन्हें पूरा एक दिन गुजारना पड़ता है। इस दिन लोग वनदेवी से प्राकृतिक आपदा से रक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं।
हैरान कर देने वाली बात यह है कि इस दौरान लोग अपने घरों में ताले नहीं लगाते हैं क्योंकि उनका ऐसा विश्वास है कि जो भी चोरी करने की कोशिश करेगा उसकी आंखों की रोशनी चली जाएगी और वह जिंदगीभर के लिए अंधा हो जाएगा।
गांव के लोग इस विशेष दिन पर सूर्योदय से पहले ही घर से निकल जाते हैं और सूर्यास्त तक जंगल में ही बिताते हैं। इस दिन गांव में कोई भी नहीं रुकता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि वनदेवी इस दौरान गांव में आती हैं और ऐसे में किसी जीवित इंसान का उस समय वहां उपस्थित रहना अपशकुन है।
यहां के लोगों के लिए यह पूजा काफी मायने रखती है। इस दिन प्रसाद बनाने का कार्य महिलाओं को सौंपा जाता है और पूजा पुरूष करते हैं। दिन भर ये अपना गुजारा प्रसाद खाकर ही करते हैं।
नागा साधुओं के गुस्से से जुड़े कुछ तथ्य, जिन्हें जानना आपके लिए है बहुत जरूरी…
गांव के सरपंच विक्रम माहतो इस परंपरा के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि, आज से कई सौ साल पहले हैजा और प्लेग के कारण गांव में कई लोगों की मौत हो गई थी।
इसके बाद से वनदेवी की पूजा की शुरूआत हुई। इस दौरान जिस किसी ने भी चोरी करने की कोशिश की उसकी आंखों की रोशनी वाकई में चली गई।