खांसी रहेगी कोसो दूर, बस करें ये काम

चिकित्सकों का कहना है कि लोग क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) को आसानी से पहचान सकते हैं, अगर लोगों को लगे कि उन्हें दो महीने से लगातार बलगम वाली खांसी आ रही है, तो वे समझ लें कि आपको डॉक्टर से तुरंत मिलने की जरूरत है.

खांसी

सरोज सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के रेस्पिरेटरी मेडिसिन के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. राकेश चावला का कहना है, “सीओपीडी को हम ‘कालादमा’ भी कहते है. इसमें फेफड़े में एक काली तार बन जाती है. यह अस्थमा के दमा से अलग होता है. अस्थमा एलर्जी प्रकार का रोग होता है, जो वंशानुगत और पर्यावरण कारकों के मेल द्वारा होता है.”

उन्होंने कहा, “इसमें इतनी खांसी आती है कि फेफड़ा बढ़ जाता और रोगी चलने लायक नहीं रहता. यहां तक कि मुंह से सांस छोड़ना उसकी मजबूरी बन जाती है. इस रोग का सबसे बड़ा कारण धूम्रपान है. गांव में जहां लकड़ी पर खाना बनता है उन स्थानों की अधिकतर महिलाएं सीओपीडी की चपेट में रहती हैं.”

उन्होंने कहा कि सीओपीडी के लक्षण 35 साल की उम्र के बाद ही नजर आते हैं. सीओपीडी का ज्यादातर उपचार ऐसा है, जो व्यक्ति खुद भी कर सकता है. हाालांकि सीओपीडी की दवाइयां लम्बे समय तक चल सकती है.

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डॉ. राकेश ने कहा कि अगर आप सीओपीडी के मरीज हैं, तो यह ध्यान रखिए कि डॉक्टर की सलाह के बिना दवाइयां बंद नहीं करनी है. इसके अलावा लोगों में नॉन इन्वेसिव वेंटीलेशन (एनआईवी) उपचार के बारे में जागरूकता का अभाव है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के मुताबिक, दुनियाभर में आठ करोड़ लोग मध्यम से गम्भीर स्तर की सीओपीडी समस्या से पीड़ित है. ऐसा अनुमान है वैश्विक स्तर पर यह मौत का तीसरा सबसे बड़ा और विकलांगता का पांचवा सबसे बड़ा कारण बन सकता है.

डॉ. राकेश ने कहा, “सीओपीडी की मध्यम या गम्भीर अवस्था वाले मरीजों को एनआईवी दवाई दी जा सकती है. यह रक्त में कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर कम कर देती है और इससे मरीज सामान्य ढंग से सांस ले पाता है.

सीओपीडी या सांस की समस्या की जोखिम वाले मरीजों को घर के अंदर ही रहने की सलाह दी जाती है, इसलिए यह जरूरी है कि ये मरीज अपने घर के आस-पास का वातावरण सही करें.”

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