कोरोना संकट:इस साल के अंत तक वैक्सीन का निर्माण,जानें पूरी खबर…

ब्रिटेन।कोरोना वायरस महामारी से पूरी दुनिया जूझ रही है,तो वहीं लगातार मरने वालों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है।संक्रमित लोगो की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही है.इसके साथ ही दुनिया भर में कोरोना वैक्सीन बनाने की कवायद शुरु हो गई है।

अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोरोना वायरस से संक्रमितों को ठीक करने के लिए वर्ष 2020 के अंत तक वैक्सीन विकसित किए जाने की संभावना जताई हैट्रंप ने COVID-19 वैक्सीन विकसित करने की संभावनाओं को लेकर शुक्रवार को उत्साहित मूल्यांकन दिया. उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस साल के अंत तक कोरोना से निपटने के लिए वैक्सीन तैयार हो जाएगी।

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समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, ‘हम उम्मीद कर रहे हैं कि कोरोना वायरस से संक्रमितों को ठीक करने वाली वैक्सीन इस साल के अंत तक तैयार हो जाएगी, मुमकिन है कि पहले भी हम वैक्सीन इजाद कर लें. अगर हम कर पाए तो.’ सबसे बड़े कोरोना वायरस वैक्सीन प्रॉजेक्ट में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी को सकारात्मक नतीजे मिले हैं। बंदरों पर की गई स्टडी में वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी बढ़ती देखी गई है और कोई साइड इफेक्ट भी नहीं मिला है। ChAdOx1 nCoV-19 का ट्रायल कर रहे रीसर्चर्स ने बताया है कि वैक्सीन का ट्रायल 6 Rhesus Macaque बंदरों पर किया गया जिसमें पाया गया कि उनका इम्यूनिटी सिस्टम वायरस से लड़ने के लिए तैयार हो गया।

व्हाइट हाउस के रोज गार्डन में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, “जैसा कि उन्होंने एक वैक्सीन को लेकर एक अपडेट दिया. हमें लगता है कि हमें कुछ बहुत अच्छे परिणाम बहुत जल्द मिलने वाले हैं.”

चीन पर साधा निशाना

बहरहाल, अमेरिका के एक शीर्ष सांसद ने चीन की सरकार को कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी का कारण बनने वाले उसके “झूठ, छल और बातों को गुप्त रखने की कोशिशों” के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने को लेकर 18 सूत्री योजना सामने रखी है. भारत के साथ सैन्य संबंध बढ़ाना भी इस योजना का एक हिस्सा है.

फेफड़े बचे, निमोनिया भी नहीं
स्टडी में पाया गया कि वैक्सीन की एक डोज से फेफड़ों को होने वाला नुकसान भी बचाया जा सका। कोरोना का सबसे बड़ा हमला शरीर में फेफड़ों पर ही होता है। वैक्सीन शरीर को वायरस से लड़ने के लिए जरूरी सेल्स और ऐंटीबॉडी बनाने में मदद करती है। रीसर्चर्स ने बताया, ‘SARS-CoV-2 से पीड़ित जिन जानवरों को वैक्सीन दी गई थी, उनके फेफड़ों और सांस की नली के टिशू में वायरस काफी कम मात्रा में पाया गया जबकि जिन जानवरों को वैक्सीन नहीं दी गई थी उनमें यह काफी बढ़ा हुआ था। जिन जानवरों को वैक्सीन दी गई थी उन्हें निमोनिया भी नहीं हुआ।’

इंसानों पर असर देखना जरूरी
स्टडी में यह भी पाया गया कि ज्यादा कोरोना वायरस और फिर वैक्सीन से इन्जेक्ट किए जाने पर किसी भी बंदर में वायरल निमोनिया नहीं था। न ही वैक्सीन का कोई साइड इफेक्ट पाया गया। हालांकि, फिलहाल यह पुष्ट होना ज्यादा जरूरी है कि क्या इंसानों पर भी इसका इतना ही असर होगा। ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टिट्यूट की वैक्सनॉलजी प्रफेसर सेरा गिलबर्ट का कहना है कि ज्यादा आबादी पर इस्तेमाल करने से पहले इसे टेस्ट करके डेटा लिया जाना है और साबित करना है कि यह काम करती है और वायरस को फैलने से रोकती है।

साल के अंत तक उत्पादन की उम्मीद
ब्रिटेन की दवा बनाने वाली कंपनी AstraZeneca ने ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के साथ पार्टनरशिप की है और दावा किया है कि ट्रायल सफल होने पर साल के अंत तक दवा के 100 मिलियन डोज तैयार कर लिए जाएंगे। हालांकि, अब यह भी एक समस्या है कि टेस्ट के लिए जरूरी प्राकृतिक तौर पर वायरस की चपेट में आने वाले ऐक्टिव ममलों की संख्या शायद पर्याप्त नहीं है।

विकासशील देशों के लिए जरूरी
अगर ब्रिटेन में ट्रायल सफल होता है तो ऑक्सफर्ड की टीम केन्या मेडिकल रीसर्च इंस्टिट्यूट के साथ मिलकर केन्या की सरकार से वहां टेस्ट करने की इजाजत लेगी। इस बात की भी तैयारी की जा रही है कि वैक्सीन के बनने के साथ ही बड़े स्तर पर इसका उत्पादन किया जा सके ताकि विकासशील देशों में इसे पहुंचाया जा सके जहां जरूरत ज्यादा है। दूसरी ओर अगले महीने तक ब्रिटेन के फ्रंटलाइन हेल्थवर्कर्स पर किए गए पहले बैच के ट्रायल के नतीजे आने की भी उम्मीद है।

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