
रिपोर्ट- भुपेन्द्र बरमण्डलिया
मध्य प्रदेश के अति पिछड़े झाबुआ जिले में दिल को झकझोर देने वाला मामला सामने आया है। दरअसल सांसद गुमान सिंह डामोर के गृह क्षेत्र उमरकोट के भाभर फलिए में रहने वाली रामली पति रतन भाबोर बेल बनकर कर अपने बच्चों 5 बच्चों के साथ खेत में हल जोतने पर मजबूर है।
इतना ही नहीं रमली को आज तक केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चल रही किसी भी योजनाका लाभ अभी तक नहीं मिल पाया है। केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा योजनाओं को जमीन पर उतारने के बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं लेकिन जमीनी हकीकत रामली को देखकर कुछ और ही नजर आ रही..हम आपको पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी झाबुआ जिले की मदर इंडिया से मिलवाने वाले है। जो अपने दम और सरकारी मदद से बगैर अपने बच्चों का भविष्य गढ़ रही है।
बच्चों के भविष्य और बेहतर ज़िदगी के लिये बैल की जगह अपने आपको हल में जोतकर खेत में काम करती यह रामली बाई है। अंधेरे और कच्चे मकान में रहने वाली रामली बाई के पति ने 1 लाख रूपये 10 फिसदी ब्याज पर कर्जलेकर कच्चा मकान बनाया था। कर्ज उतारने पति गुजरात मजदुरी करने चला गया।कर्ज की रकम उतारी जा सके और बच्चें पढ़ सके लिहाजा रामली बाई गांव में रहकर अपने खेत पर काम कर रही है। रामली बाई के हालात उन सरकारी दावों की भी पोल खोल रहे है जिसमें गरीब को छत और स्वच्छता का दावा किया गया है।
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आदिवासी जिले झाबुआ के उमरकोट ग्राम के भाबोर बीड़ फलिये के रहने वाली रामली बाई के पास पहचान और योजनाओं के लिये सभी सरकारीदस्तावेज तो है, लेकिन योजनाओं का लाभ नही है। रामली बाई को सहकारी संस्थाओं की ओर से भी कोई मदद नही है। रामली को न तो लोन मिला और न ही खाद। लिहाजा रामली के 5 बच्चों में दो बढ़ी लड़कियां गांव में बरतन मांझकर मां को आर्थिक मदद देते है और रामली खेत में काम करती है।
भाजपा से सांसद गुमानसिंह डामोर के गृह ग्राम में इस तरह के हालात है। प्रशासन की ओर से रामली को अबतक किसी योजना का लाभ नही मिला जबकि उसके हालात उसके गरीब होने के सारे प्रमाण दे रहे है। स्थानीय सरपंच भी मानते है कि सूची में नाम न आने के चलते रामली बाई के घर न तो शौचालयबना और न ही प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला।