आर्कटिक में बर्फ के पिघलते ही जिन्दा हो गया ये शैतान, जन जीवन के लिए बनेगा बड़ा खतरा…

गर्म होती जलवायु के कारण आर्कटिक क्षेत्र में जमीन की सतह पर मौजूद बर्फ पिघल रही है जिससे वहां मौजूद बुनियादी ढांचे के लिए खतरा पैदा हो गया है। रिसर्चर कहते हैं कि तुरंत कदम उठाने होंगे, वरना बहुत देर हो जाएगी।

पिघलते ही जिन्दा हो गया ये शैतान
एक नए अध्ययन में कहा गया कि बढ़ते तापमान के कारण आर्कटिक में बर्फ के नीचे की मिट्टी पिघलने लगी हैं, जिसे पर्माफ्रॉस्ट कहा जाता है। इससे आर्कटिक क्षेत्र का 70 प्रतिशत बुनियादी ढांचा खतरे में है, जिसमें तेल और प्राकृतिक गैस के कुछ प्रमुख क्षेत्र भी शामिल हैं। रिसर्चरों ने उत्तरी गोलार्ध के पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र का विस्तृत अध्ययन किया कि इसके पिघलने से 2050 तक कितनी इमारतें, सड़कें, रेलवे और अन्य निर्माण खतरे में पड़ सकते हैं।
इस अध्ययन रिपोर्ट के मुख्य लेखक और फिनलैंड के ऑउलु विश्वविद्यालय में भौतिक भूगोल के प्रोफेसर जेन हॉजोर्ट का कहना है, “खतरे की विशालता एक तरह से हैरान करने वाली थी।” समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में उन्होंने कहा कि “खासकर अभी जो 70 प्रतिशत इंफ्रास्ट्रक्चर पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र में आता है वहां पर बर्फ के नीचे की मिट्टी तेजी से पिघल सकती है।”

नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में कहा गया है कि “पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र के पिघलने की वजह से होने वाले नुकसान से 2050 तक 36 लाख लोग प्रभावित होंगे।” इस अध्ययन में यह भी चेतावनी दी गई है कि रूसी आर्कटिक क्षेत्र में मौजूद आधे तेल और प्राकृतिक गैस भंडार ऐसे इलाकों में हैं जो 2050 तक बर्फ पिघलने की वजह से गंभीर खतरे झेल सकते हैं।
अध्ययन यह भी कहता है कि अगर दुनिया भर के नेता पेरिस जलवायु समझौते में किए गए वादे पूरे भी करते है, तब भी 2050 तक बर्फ पिघलने से इंफ्रास्ट्रक्चर को होने वाला खतरा बना रहेगा। हालांकि रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि पूर्व औद्योगिक स्तरों के मुकाबले तापमान में वृद्धि को अगर 2 सेल्सियस से नीचे रखा जा सके तो इससे 2050 में संभावित विनाश को कम किया जा सकता है।
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हॉजोर्ट ने कहा, “इन नतीजों को चेतावनी की तरह देखना चाहिए।” उनका मानना है कि पर्माफ्रॉस्ट पिघलने से होने वाले जोखिम को बेहतर तरीके से समझने के लिए स्थानीय स्तर पर उनका ज्यादा से ज्यादा आकलन होना चाहिए। पर्माफ्रॉस्ट एक जमी हुई जमीन होती है, लेकिन जरूरी नहीं कि यह स्थायी हो। यह ज्यादातर उत्तरी गोलार्ध में पाई जाती है और वहां एक चौथाई जमीन ऐसी ही है। कई बार यह हजारों साल पुरानी होती है।
आर्कटिक सर्किल और उत्तरी जंगलों के बीच एक बड़ी पट्टी पर्माफ्रॉस्ट वाली है जो अलास्का, कनाडा, उत्तरी यूरोप और रूस के इलाकों तक फैली है। दक्षिणी गोलार्ध में पर्माफ्रॉस्ट कम पाई जाती है क्योंकि वहां जमने वाली ज्यादा जमीन नही हैं।
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कुल मिलाकर, रूस का लगभग 65 प्रतिशत क्षेत्र परमाफ्रॉस्ट है और रूस पहले ही बर्फ पिघलने के संकट से जूझ रहा है। साइबेरियाई के शहर यकुत्स्क में जमीन खिसकने की वजह से इमारतों में दरारें पड़ने लगी हैं। यकुत्स्क यकुतिया क्षेत्र का हिस्सा है जहां इस साल एक परमाफ्रॉस्ट संरक्षण कानून पारित किया गया। इलाके के नेता रूस की सरकार से राष्ट्रीय स्तर पर कदम उठाने के लिए भी दबाव डाल रहे हैं।
यह कानून परमाफ्रॉस्ट के स्थायी नुकसान की निगरानी और रोकथाम के लिए बनाया गया है। रूस में शोधकर्ता ऐसे तरीके भी तलाश रहे है कि वातावरण गरम होने के बावजूद जमीन को पिघलने से कैसे रोकें।
लेकिन अध्ययन से पता चलता है कि “इस पर लागत इतना ज्यादा आएगी कि इसे क्षेत्रीय स्तर पर लागू करना मुश्किल होगा।” अध्ययन के मुताबिक यह समझना बहुत जरूरी है कि पर्माफ्रॉस्ट इलाके में मौजूद किन बुनियादी ढांचों पर सबसे ज्यादा खतरा है और उससे बचने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।
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