आखिर संगम की ही रेती में क्यों होता है कल्पवास।
REPORT-SYED RAJA
प्रयागराज: संगम नगरी प्रयागराज में माघ मेले की शुरुआत पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व के साथ हो गई है। इस पावन मौके पर गंगा- यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी में साधू- संतों के साथ ही लाखों श्रद्धालुओ ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई। पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व के साथ ही संगम की रेती पर होने वाले एक महीने के कल्पवास की भी शुरुआत हो गई है। प्रशासन के मुताबिक लाखो की तादाद में श्रद्धालु एक महीने तक संगम की रेती पर कल्पवास करेंगे। देश विदेश से कल्पवासी पौष पूर्णिमा स्नान में आते हैं और माघी पूर्णिमा स्नान तक संगम की रेती पर ही रहते हैं
भारतीय आश्रम परम्परा में गृहस्थ आश्रम को ही सबसे श्रेष्ठ माना गया है जिसमे साल में ग्यारह महीने घर में रहकर भी बस एक महीने मोह-माया से दूर रहकर पवित्र नदियों के संगम के किनारे वास करके जप तप और साधना से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
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ये होता हैं कल्पवास
मोक्ष की इसी लालसा को लेकर लाखों श्रद्धालु माघ मेले में धर्म की नगरी तीर्थराज प्रयाग में गंगा-यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी पर एक महीने तक वास करते हैं जिसे कल्पवास कहा जाता है। संगम तट पर लगने वाला एक माह तक चलने वाले कल्पवास की शुरुवात हो गई। संगम में स्नान कल्पवास त्याग और संयम का जीवन जीते हुए पूरे समय भगवान् के नाम का सत्संग करने वाले कल्पवासियों की इस अनूठी दुनिया में धर्म-आध्यात्म, आस्था- समर्पण और ज्ञान व संस्कृति के तमाम रंग देखने को मिलते हैं।
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ऐसे किया जाता है कल्पवास
मान्यता है कि 33 करोड़ देवी देवता एक महीने तक संगम की रेती में विराजमान रहते है। कल्पवास करने आये श्रद्धालु दिन में दो बार स्नान करते है और एक बार खाना खाते है। भजन कीर्तन करते है। तुलसी के पेड़ की पूजा करते है ।