अस्पतालों की लापरवाही अब चौंकाती नहीं, बल्कि सवाल उठाती है और कब तक बांटेंगे मौत…

भोपाल। अब शायद ही कोई दिन बचता हो, जब हमें अस्पतालों की लापरवाही के किस्से न सुनने को मिलें। देश का कोई भी राज्य लापरवाही को दूर करने को तैयार नहीं है। सरकारी अस्पतालों के इंतजाम भगवान भरोसे हैं, जिसका फायदा निजी अस्पताल उठाने से नहीं चूकते।

अस्पतालों की लापरवाही

अस्पतालों में इलाज के दौरान कभी डॉक्टरों तो कभी वहां के प्रबंधन की लापरवाही से मरीजों की मौत अब चौंकाती नहीं बल्कि सवाल उठाती है कि जिंदगी की जंग जीतने आने वाले लोगों को मौत कब तक बांटी जाती रहेगी। देश का कोई राज्य या कोई शहर नहीं बचा है, जो यह कह सके कि उसके यहां का सरकारी या निजी अस्पताल मरीजों के लिए वरदान है और उसकी व्यवस्थाएं एकदम दुरुस्त हैं।

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मदुरै के एक सरकारी अस्पताल में बिजली चले जाने की वजह से गहन चिकित्सा कक्ष में भर्ती पांच मरीजों का दम तोड़ देनाव महाराष्ट्र के ठाणे में 15 अस्पतालों में अग्निशमन नियमों के पालन में घोर लापरवाही, इसके ताजा उदाहरण हैं। अब यूपी के एक अस्पताल से जो सामने आया है, वह तो लापरवाही की हदें पार करने वाला है। अलीगढ़ के एएमयू मेडिकल कॉलेज में सल्फास खाने वाली महिला के उपचार के दौरान मुंह में अचानक धमाका होने के बाद आग लग गई और महिला की मौत हो गई।

फॉरेंसिक साइंस विभाग ने माना है कि पेट में बनी अलफोस गैस के हवा से संपर्क में आने पर यह विस्फोट हुआ, लेकिन अब तक किसी की जिम्मेदारी तय नहीं की गई है। देखा जाए तो सार्वजनिक अस्पतालों की बदइंतजामी जगजाहिर है। उनमें बरती जाने वाली लापरवाहियों की वजह से अक्सर लोगों के अपनी जान से हाथ धो बैठने की खबरें आती रहती हैं। इसकी वजह से बहुत सारे लोग, जो थोड़े-से सक्षम हैं, इन अस्पतालों में इलाज के लिए नहीं जाते। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति इस असंतोष का फायदा निजी अस्पताल उठाते हैं। मगर वहां दूसरे तरह की मनमानियां हैं।

वे इलाज के नाम पर अतार्किक ढंग से पैसे वसूलते हैं, मगर मूलभूत ढांचे के मामले में सामान्य नियम-कायदों तक की परवाह नहीं करते। मदुरै के एक सरकारी अस्पताल में बिजली चले जाने की वजह से गहन चिकित्सा कक्ष में भर्ती पांच मरीजों का दम तोड़ देना उदाहरण है। हालांकि मदुरै के सरकारी अस्पताल के प्रबंधन का कहना है कि पांच मरीजों की मौत स्वाभाविक रूप से हुई, यह संयोग मात्र है कि उसी समय बिजली चली गई। पर परिजन यह दलील मानने को तैयार नहीं हैं।

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ठाणे के जिन अस्पतालों में तालाबंदी करनी पड़ी उन्हें पहले सख्त हिदायत दी जा चुकी थी, फिर भी उन्होंने सुधार करना जरूरी नहीं समझा। सरकारी अस्पतालों में उपकरणों के रखरखाव में संजीदगी व मरीजों के प्रति संवेदनशीलता न बरतने की शिकायतें आम हैं।

देश के विभिन्न हिस्सों में कई बार ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जब आक्सीजन की कमी के कारण कई मरीजों ने दम तोड़ दिया। कहीं नवजात शिशुओं को रखे जाने वाले बिजली चालित पालने का ठीक से रखरखाव और संचालन न हो पाने से बहुत सारे बच्चों की जान चली गई। कहीं संयंत्रों का संचालन ठीक से न हो पाने से उनमें आग लग गई और मरीज जान से हाथ धो बैठे। इस तरह की लापरवाही मरीजों के हिस्से नहीं आती, फिर भी वे जान गंवाते हैं।

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