अब कनाडा की ही तरह भारत में भी नवजात का इलाज,जानें कैसी है तकनीक

यूपी के सभी चिकित्सा संस्थानों एवं अस्पतालों में नवजात को कनाडा की तर्ज चिकित्सा सुविधा देने की तैयारी है। इसके लिए एसजीपीजीआई और कनाडा की टीम सभी संस्थानों के बाल रोग विशेषज्ञों एवं नर्सिंग स्टाफ को प्रशिक्षित करेगी।

नवजात का इलाज

पीजीआई में नियोनेटल एडवांस सिमुलेशन ट्रेनिंग एंड रिसर्च सेंटर (एनएएसटीआरसी) खोलने की तैयारी शुरू हो गई है। इससे समय से पहले पैदा होेने वाले और संक्रमण से बीमार होने वाले नवजात की जिंदगी बचाई जा सकेगी।

प्रदेश में अभी बाल मृत्युदर एक हजार में 37 है। इसे कम करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। डब्ल्यूएचओ का मानना है कि कनाडा में वक्त से पहले पैदा होने वाले बच्चों की देखभाल बेहतर तरीके से होती है। यूपी में एसजीपीजीआई को सबसे उपयुक्त माना गया है। ऐसी स्थिति में कनाडा के साथ करार करके पीजीआई में एनएएसटीआरसी खोलने की तैयारी है।

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पहले पीजीआई और फिर यूपी में दिया जाएगा प्रशिक्षण

जानिए, कनाडा की तकनीक में क्या है खास 
पीजीआई के नियोनेटोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रो. गिरीश गुप्ता ने बताया कि समय से पहले पैदा होने वाले बच्चों की देखभाल में यहां बेहतरीन तकनीक अपनाई जाती है। फिर भी इसमें सुधार की गुंजाइश बनी रहती है।
-एनआईसीयू में ऑक्सीजन देने से लेकर तापमान, लाइट, ध्वनि जैसी बातों का बहुत महत्व होता है। इसका आकलन करने के लिए कनाडा के विशेषज्ञ अलग-अलग तकनीक अपना रहे हैं।
– कनाडा में नवजात को वेंटिलेटर पर रखते वक्त ऑक्सीजन देने की पाइप भी अलग तरीके की अपना रहे हैं। उस पाइप से ज्यादा समय तक वेंटिलेटर पर रहने वाले बच्चे की सांस नली प्रभावित नहीं होती है।
– इतना ही नहीं गर्भ में होने वाले संक्रमण को रोकने के लिए अलग से यूनिट बनी हुई है। नवजात के पैदा होते ही उसके हार्ट, ब्रेन का आकलन कर लिया जाता है। इस सारी वजहों से वहां बच्चों की मृत्यु दर में गिरावट आई है।

कनाडा के बाल रोग विशेषज्ञों की टीम, नर्सिंग टीम यहां आकर एसजीपीजीआई की टीम को प्रशिक्षित करेगी। फिर यहां की टीम विभिन्न चिकित्सा संस्थानों, जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को प्रशिक्षित करेगी। इसके लिए तैयारी शुरू कर दी गई है। जल्द ही करार स्वीकृत होने के बाद इस पर सरकार से भी सहयोग लिया जाएगा।

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सुधर रही है इलाज की व्यवस्था

पीजीआई निदेशक प्रो. राकेश कपूर ने बताया कि कनाडा के विशेषज्ञ संस्थान में आकर प्रशिक्षण देंगे। इससे हमारी गुणवत्ता बढ़ेगी। फिर पूरे प्रदेश में बाल चिकित्सा के क्षेत्र में सुधार होगा। चिकित्सकों के साथ ही नर्सिंग स्टाफ को भी प्रशिक्षित किया जाएगा। नवजात चिकित्सा के क्षेत्र में उच्च श्रेणी की शिक्षा, प्रशिक्षण, शोध और नए आविष्कार के लिए इस सेंटर की स्थापना की जा रही है।

डब्ल्यूएचओ के प्रतिनिधि डॉ. राजीव बहल ने बताया कि प्रदेश में बाल स्वास्थ्य को लेकर लगातार काम हो रहा है। 10 साल पहले सिर्फ बड़े शहरों में सिक न्यू बॉर्न केयर यूनिट होती थी। अब छोटे शहरों एवं जिला मुख्यालय पर भी यह सुविधा है। सरकारी और प्राइवेट सेंटर में एनआईसीयू खुले हैं। फिर भी अभी काफी काम की जरूरत है। इसी के तहत प्रदेश में भी कनाडा की तकनीक को ले आने का प्रयास किया जा रहा है।

कनाडा के प्रतिनिधि प्रो. शूक ली ने बताया कि नवजात की देखभाव के लिए सिर्फ बाल रोग विशेषज्ञ पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए बाल रेस्पिरेटरी विशेषज्ञ की भी जरूरत पड़ती है। हमारी टीम यहां के बाल रोग विशेषज्ञों को अलग-अलग समस्याओं के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों से वाकिफ कराएगी। इससे एक ही चिकित्सक नई तकनीक से बच्चों का इलाज कर सकेगा।

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