अजा एकादशी का अपना अलग महत्व, जानें व्रत की विधि और महत्व

हिन्दू मान्यताओं के अनुसारक हर दिन कोई ना कोई त्योहार मनाया जाता है. हर त्योहार का अपना अलग ही स्थान होता है. हर त्योहार किसी ना किसी के दिल से जुड़ा हुआ होता है. भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है. ये  श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बाद पड़ती है. इसे अजा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस एकादशी पर  भगवान विष्णु के ‘उपेन्द्र’ स्वरूप की पूजा अराधना की जाती है तथा रात्रि जागरण किया जाता है. इस दिन पूजा और व्रत रखने का विशेष महत्व है.

अजा एकादशी

अजा एकादशी व्रत विधि:
– जिस प्रकार अन्य एकादशी के व्रत का संकल्प लेने का विधान है ठीक उसी प्रकार अजा एकादशी के व्रत का संकल्प लेना होता है.
– सबसे पहले दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर और स्नान आदि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए और सच्चे मन से व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
– भगवान विष्णु जी की प्रतिमा के सामने धूप, दीप, नेवैद्य, फूल और फल अर्पित करने चाहिए.
– यदि संभव हो तो एक समय फलाहार करना चाहिए.
– विष्णु जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग जरूर करें. ऐसा कहा जाता है कि तुलसी का प्रयोग करने से भगवान नारायण अति प्रसन्न होते हैं.
– जो भी जातक इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु की सच्चे मन से पूजा करता है और व्रत रखता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है.

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अजा एकादशी व्रत महत्व:
शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु को एकादशी बहुत अधिक प्रिय है. इसलिए जो भी भक्त पूरी श्रद्धा से व्रत करते हैं वो भगवान की कृपा से संसार के सभी सुखों को प्राप्त कर लेते हैं.
एकादशी के व्रत में रात्रि जागरण, गौ पूजन और दान का भी विशेष महत्व है. इस दिन किए गए दान से व्यक्ति को पुण्य फलों की प्राप्ति होती है.

 

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