अकेलापन धीरे-धीरे खा सकता है आपको, क्या कभी सोचा…

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, सोशल एनिमल है। यानी वो अकेले जिंदगी बसर नहीं कर सकता। लोगों से घुलना-मिलना, उनके साथ वक़्त बिताना, पार्टी करना और मिल-जुलकर जश्न मनाना हमारी फितरत भी है और जरूरत भी। इसके विपरीत, अगर कोई अकेला रहता है, लोगों से मिलता-जुलता नहीं, उसके साथ वक़्त बिताने वाले लोग नहीं हैं, तो इसे एक बड़ी परेशानी समझा जाता है।यही वजह है कि अकेलेपन को सजा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है। लोगों को जेलों में अकेले कैद करके रखा जाता है। दिमागी तौर पर बीमार लोगों को जंजीरों से बांधकर अकेले रखा जाता है।

अकेलापन

अकेलापन इस कदर खतरनाक है कि आज तमाम देशों में अकेलेपन को बीमारी का दर्जा दिया जा रहा है। अकेलेपन से निपटने के लिए लोगों को मनोवैज्ञानिक मदद मुहैया कराई जा रही है।तो, क्या वाकई अकेलापन बहुत खतरनाक है और इससे हर कीमत पर बचना चाहिए? बहुत से लोग इसका जवाब ना में देना पसंद करते हैं। उन्हें पार्टियों में, किसी महफिल में या जश्न में शरीक होना हो, तो वो कतराने लगते हैं। महफिलों में जाना नहीं चाहते। लोगों से मिलने-जुलने से बचते हैं।

अकेले रहने से क्या हासिल?
ऐसे बहुत से लोग हैं जो आज अकेले रहने की वकालत करते हैं। अमरीकी लेखिका एनेली रुफस ने तो बाकायदा ‘पार्टी ऑफ वन: द लोनर्स मैनीफेस्टो’ के नाम से किताब लिख डाली है। वो कहती हैं कि अकेले रहने के बहुत से मजे हैं। आप ख़ुद पर फोकस कर पाते हैं। अपनी क्रिएटिविटी को बढ़ा पाते हैं। लोगों से मिलकर फिजूल बातें करने या झूठे हंसी-मजाक में शामिल होने से बेहतर अकेले वक़्त बिताना।

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वहीं ब्रिटिश रॉयल कॉलेज ऑफ जनरल प्रैक्टिशनर्स कहता है कि अकेलापन डायबिटीज जैसी भयानक बीमारी है। इससे भी उतने ही लोगों की मौत होती है, जितनी डायबिटीज की वजह से। अकेलापन हमारे सोचने-समझने की ताकत को कमजोर करता है। अकेला रहना हमारी अक़्लमंदी पर बुरा असर डालता है। बीमारियों से लड़ने की हमारी क्षमता कम होती है।

अकेले रहने से बढ़ती है क्रिएटिविटी

तन्हा रहना, पार्टियों से दूरी बनाना और मित्रों से मिलने में आना-कानी करना अगर ख़ुद का फैसला है, तो ये काफी फायदेमंद हो सकता है।अमरीका की सैन जोस यूनिवर्सिटी के ग्रेगरी फीस्ट ने इस बारे में रिसर्च की है। फीस्ट इस नतीजे पर पहुंचे कि ख़ुद के साथ वक़्त बिताने से आपकी क्रिएटिविटी को काफी बूस्ट मिलता है। इससे आपकी ख़ुद-ऐतमादी यानी आत्मविश्वास बढ़ता है। आजाद सोच पैदा होती है। नए ख्यालात का आप खुलकर स्वागत करते हैं।

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जब आप कुछ वक़्त अकेले बिताते हैं तो आपका जहन सुकून के पलों का बखूबी इस्तेमाल करता है। शोर-शराबे से दूर तन्हा बैठे हुए आपका जहन आपकी सोचने-समझने की ताकत को मजबूत करता है। आप पुरानी बातों के बारे में सोचकर अपनी याददाश्त मजबूत करते हैं।

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