Birthday Special : ड्रीम गर्ल के लिए हर हद पार करने को तैयार थे संजीव कुमार

नई दिल्ली| हिंदी सिनेमा जगत में वर्ष 1960 से 1984 तक सक्रिय रहे अभिनेता संजीव कुमार बॉलीवुड सितारों के बीच एक जगमगाता नाम हैं। उन्होंने अपने दमदार अभिनय और संवाद अदायगी की अनोखी शैली से सिनेमा के शौकीनों को अपना दीवाना बना लिया। उनके निभाए कई किरदार अब भी लोगों के जेहन में बसे हैं।

संजीव कुमार

मुंबई में 9 जुलाई, 1938 को मध्यवर्गीय गुजराती परिवार में जन्मे संजीव कुमार ने बचपन में ही हीरो बनने का सपना संजोया था। उनके बचपन का नाम हरीभाई जेठालाल जरीवाला था, लेकिन प्यार से उन्हें हरीभाई जरीवाला कहकर पुकारा जाता था। उनका पैतृक निवास सूरत में था, लेकिन बड़े पर्दे पर दिखने की दीवानगी उन्हें चमचमाते मुंबई शहर की ओर खींच लाई।

फिल्मों में बतौर अभिनेता काम करने का सपना देखने वाले हरीभाई को एक हीरो के लिहाज से अपना नाम कुछ अटपटा लगा। इसलिए फिल्म उद्योग में आकर उन्होंने अपना नाम बदलकर संजीव कुमार रख लिया।

अपने जीवन के शुरुआती दौर में वह पहले रंगमंच से जुड़े, लेकिन बाद में उन्होंने फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया। इसी दौरान वर्ष 1960 में उन्हें फिल्मालय बैनर की फिल्म ‘हम हिन्दुस्तानी’ में एक छोटी-सी भूमिका निभाने का मौका मिला। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक फिल्मों में अपने शानदार अभिनय से उन्होंने अपना सिक्का जमा लिया।

वर्ष 1962 में राजश्री प्रोडक्शन द्वारा निर्मित फिल्म ‘आरती’ के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया, जिसमें वह पास नहीं हो सके।

संजीव कुमार को सर्वप्रथम मुख्य अभिनेता के रूप में 1965 में प्रदर्शित फिल्म ‘निशान’ में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1960 से 1968 तक संजीव कुमार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। फिल्म ‘हम हिन्दुस्तानी’ के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली, वह स्वीकार करते चले गए।

इसी बीच उन्होंने ‘स्मगलर पति-पत्नी’, ‘हुस्न’ और ‘इश्क’, ‘बादल’, ‘नौनिहाल’ और ‘गुनहगार’ जैसी कई बी ग्रेड फिल्मों में अभिनय किया, लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई।

वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘शिकार’ में संजीव कुमार पुलिस ऑफिसर की भूमिका में दिखाई दिए। यह फिल्म पूरी तरह अभिनेता धर्मेद्र पर केंद्रित थी, फिर भी संजीव अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फिल्म में दमदार अभिनय के लिए उन्हें सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला।

उन्होंने ‘नया दिन नई रात’ फिल्म में एक साथ नौ किरदार निभाए, जो आज भी एक रिकार्ड है। इस फिल्म में उन्होंने लूले-लंगड़े, अंधे, बूढ़े, बीमार, कोढ़ी, किन्नर, डाकू, जवान और प्रोफेसर का किरदार निभाया था। बहुचर्चित फिल्म ‘शोले’ में दोनों हाथ कटे ठाकुर के किरदार को संजीव ने अपने अभिनय से अमर कर दिया।

उन्हें श्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था। इसके अलावा फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता व सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार भी उन्हें हासिल हुआ।

संजीव कुमार को उनके शिष्ट व्यवहार, मीठी मुस्कान व विशिष्ट अभिनय शैली के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा।

वह पर्दे पर जितने गंभीर थे, उतने ही अपनी प्रेमिकाओं को लेकर शक्की भी थे। बताया जाता है कि संजीव कुमार अफेयर शुरू होने से पहले ही महिलाओं पर शक करने लगते थे।

संजीव कुमार का अंधविश्वास

उन्हें यह अंधविश्वास था कि उनके परिवार में बड़ा बेटा 10 साल का हो जाने पर उसके पिता की मौत हो जाती है। उनके दादा, पिता और भाई, सबके साथ यह घटित हो चुका था।

संजीव अपने जमाने की ‘ड्रीम गर्ल’ हेमा मालिनी को बेहद चाहते थे, लेकिन हेमा ने उनको ‘ना’ कह दिया था। इसके बाद उनका नाम अभिनेत्री व गायिका सुलक्षणा पंडित के साथ भी जोड़ा गया। लेकिन संजीव ने पूरी जिंदगी तन्हा गुजारने की ठान ली।

वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म ‘खिलौना’ की जबरदस्त कामयाबी के बाद संजीव कुमार ने नायक के रूप में अपनी अलग पहचान बना ली। वर्ष 1970 में ही प्रदर्शित फिल्म ‘दस्तक’ में लाजवाब अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

उन्होंने तीन राष्ट्रीय पुरस्कार और कई फिल्मफेयर अवार्ड भी जीते। उन्हें 1977 में फिल्म ‘अर्जुन पंडित’ के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार और 1976 की फिल्म ‘आंधी’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला।

आजीवन कुंवारे रहे संजीव ने मात्र 47 वर्ष की आयु में 6 नवंबर, 1985 को अपने जीवन की अंतिम सांस ली। अचानक हृदयगति रुक जाने से बंबई में उनका निधन हो गया। आज भले ही वह हमारे बीच सदेह नहीं हैं, लेकिन उनकी अदाकारी और अदाएं हमेशा याद आती रहेंगी।

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