शिक्षक दिवस विशेष : बलिहारी गुरु आपणे, गोबिंद दियो मिलाय…. 

शिक्षक दिवस ‘गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपणे, गोबिंद दियो मिलाय..’ विश्व प्रसिद्ध इस दोहे में महान कवि कबीर दास ने गुरु को ईश्वर से बड़ा स्थान दिया है। हमारे देश और समाज में गुरु को व्यक्ति के जीवन का ‘पथ प्रदर्शक’ कहा जाता है। गुरुओं को समर्पित पांच सितंबर पूरे भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

हमारे देश में अनेक विभूतियों ने अपने ज्ञान से लोगों का मार्गदर्शन किया है। उन्हीं में से एक महान विभूति, शिक्षाविद्, दार्शनिक, महानवक्ता व विचारक थे डॉ. राधाकृष्णन। इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान दिया।

स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन से एक बार कुछ शिष्यों एवं उनके प्रशंसकों ने उनका जन्मदिन मनाने की अनुमति मांगी थी। उनके अनुरोध पर राधाकृष्णन ने कहा था, “हां, शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की अनुमति है।” तब से हमारे देश में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

शिक्षक और छात्र के बीच की एक बहुत ही मतबूत डोर होती है। एक आर्दश शिक्षक केवल अपने छात्र को केवल स्कूली ज्ञान ही नहीं बल्कि उसे जीवन भर का पाठ पढ़ाता है। शायद इसीलिए संत कबीर ने कहा है, “गुरु समान दाता नहीं, याचक शीश समान..तीन लोक की संपदा, सो गुरु दीन्ही दान..” इस दोहे में कबीर ने शिक्षक की महिमा का गुणगान कर कहा है कि गुरु के समान कोई दाता नहीं, और शिष्य के सदृश याचक नहीं। गुरु ने तीनों लोक की संपत्ति से भी बढ़कर ज्ञान का दान दिया है।

लेकिन वर्तमान समय में शिक्षा और शिक्षक दोनों की भूमिका बदल गयी है। आज शिक्षा और शिक्षक दोनों ने व्‍यवसायिक रूप धारण कर लिया है,ऐसे में वर्तमान युग में एक शिक्षक का शिष्‍य के जीवन में क्‍या महत्‍व रह गया है , इसी पर चर्चा करते हुए हमने राजधानी लखनऊ के कुछ विद्वान शिक्षकों से इस विषय पर चर्चा की।

शिक्षक दिवस की महत्ता की चर्चा करने पर लखनऊ विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर डा आसुतोष मिश्रा  ने कहा, “शिक्षकों को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के मार्ग पर चलना चाहिए। शिक्षकों को अपने छात्रों के जीवन को संवारने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए। जब देश के नेताओं के पास किसी विषय का स्थायी समाधान नहीं होता है, तो एक शिक्षक के पास उसका समाधान होता है।”

उन्‍होने छात्रों को संदेश देते हुए कहा, “छात्रों को देश को मजबूत बनाने और उसकी अखंडता के लिए काम करना चाहिए। वहीं जाति-धर्म संप्रदाय को दरकिनार सही आदर्शो पर चलें।”

लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्‍थान के निदेशक अशोक सिन्‍हा से जब पूछा गया कि आज के इंटरनेट और ई-एजुकेशन के दौर में शिक्षक की भूमिका क्या रह गई है, तो उन्होंने कहा, “ई-एजुकेशन सूचना का माध्यम है, विस्तार से समझाने वाला नहीं। एक छात्र को इंटरनेट पर शिक्षा से जुड़ी सब सामग्री मिल सकती है, लेकिन इंटरनेट छात्र को उस सामाग्री का सार नहीं समझा सकता। वह कहते हैं कि शिक्षक सिर्फ शिक्षा ही नहीं देता, वह छात्र के सम्‍पूर्ण व्‍यक्तित्‍व और अन्‍य पहलुओं को भी निखारता है। इसलिए शिक्षक की प्राथमिकता हमेशा बनी रहेगी।”

आज के दौर की बात करते हुए कहते हैं, आज शिक्षा और शिक्षक दोनों के मायने बदल गए हैं, वर्तमान समय में शिक्षा का व्‍यवसायीकरण हो गया है, अब शिक्षा सिर्फ रोजगार प्राप्‍त करने के लिए की जाती है और शिक्षक भी धन के बदले शिक्षा देने लगा है। कहते हैं कि, जब से शिक्षा में स्‍पेसलाइजेशन का दौर चला तब से शिक्षा और शिक्षक दोनों की भूमिका और महत्‍ता दोनों घट गयीं।

लखनऊ में एक प्राइवेट इंटर कॉलेज के शिक्षक इन्‍द्र कुमार त्रिवेदी ने छात्रों के लिए अपने संदेश में कहा, “छात्रों को अपने जीवन में नैतिक मूल्यों को बड़ा स्थान देना चाहिए। नैतिक मूल्यों से ही समाज, राष्ट्र और विश्व का कल्याण हो सकता है। छात्रों में सफलता की सीढ़ी चढ़ने के लिए किताबी ज्ञान के साथ ही व्यावहारिक ज्ञान का होना भी बहुत जरूरी है, इसलिए उन्हें इस ओर खास ध्यान देना चाहिए।”

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