अब गुमनाम नहीं होंगे वो नाम, जिन्होंने देश लिए कभी बहाया था लहू
इलाहाबाद। आज हम आजाद हैं। भारत की सरजमीं पर चैन की सांस ले सकते हैं। आज देश में सियासी खेल और बदलती राजनीति से भले ही जनता थोड़ी नाखुश नजर आती है। लेकिन आज वो दौर नहीं है, जब देश ब्रिटिश हुकूमत के कदमों में दबा हुआ था।
भारत की सरजमीं पर दिलाया अधिकार
आज प्रत्येक नागरिक को अपने हक़ के खिलाफ आवाज उठाने का अधिकार है। अपना धर्म चुनने का अधिकार है। व्यक्तिगत जीवन में दखल देने वाले के खिलाफ आवाज उठाने का भी अधिकार है। लेकिन यह सभी अधिकार और स्वतंत्रता को पाने में कितने ही वीर जवानों ने अपने लहू को बहाया होगा। इसकी कल्पना कर पाना भी मुश्किल है।
हम सिर्फ कुछ ही वीर जवानों की गाथाएं सुनते हैं और याद करते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि ऐसे ही न जाने कितने देशभक्त आजादी के लिए इस माटी में मिलकर गुमनाम हो गए, जिनका नामोनिशान भी इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं है।
इलाहबाद में आज़ादी के ऐसे ही गुमनाम क्रान्तिकारियों के 500 से अधिक दस्तावेज अब आम जनता के लिए समर्पित कर दिए गए है।
अभी तक ये सभी दस्तावेज शासन के गोपनीय कक्षों में बंद पड़े थे। ये वह सैकड़ों साल पुराने ऐतिहासिक दस्तावेज हैं, जिनके हर पन्ने पर मुल्क को आज़ाद कराने वाले अमर क्रांतिकारियों की वीरगाथा दर्ज है।
ब्रितानी हुकूमत की नजर होने के कारण आज़ादी के लिए कुर्बानी देने वाले ये क्रांतिकारी कभी रोशनी में सामने नहीं आये। लेकिन उस दौर की पत्र पत्रिकाओं और उनके खतों के जरिये किये गए आपसी लेनदेन में उनके संघर्ष की पूरी कहानी इन पीले पड़ चुके पन्नों में दर्ज है। इन कहानियों को अब आम जनता भी देख सकेगी।
इलाहाबाद के कलक्ट्रेट के तहखाने में कैद इन अमूल्य दस्तावेजों पर अब तक प्रशासन की कभी नजर नहीं गयी थी। पढ़ने के बाद पता चला की इन पन्नो में देश की आजादी के लिए कुर्बान होने वाले ऐसे कई सौ क्रान्तिकारियों के ब्योरे मौजूद हैं, जो कभी रोशनी में नहीं आ सके।
ये अमूल्य दस्तावेज अब क्षेत्रीय अभिलेखागार इलाहाबाद की इमारत में करीने से रखे जायेंगे ताकि आज़ादी के अनछुए पहलुओं की जानकारी का इच्छुक हर आम भारतीय और शोध छात्र इसे देख और पढ़ सकें।