
दून की आबोहवा लगातार जहरीली होती जा रही है, लेकिन आबोहवा में कितना जहर घुल रहा है इसका किसी को पता नहीं है। राज्य बनने के 19 साल बाद भी उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दून में इसकी मॉनिटरिंग के लिए कोई सिस्टम नहीं लगा पाया। महीने में एक बार तीन जगह मैन्युअली आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं और इन्हें साल में एक बार दीपावली पर जारी किया जाता है।
शुद्ध आबोहवा के मशहूर रहे देहरादून की फिजां अब बदल चुकी है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ही आंकड़ों को मानें तो दून में प्रदूषण का स्तर दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों के करीब पहुंचने वाला है। बावजूद इसके भी न तो सरकार और नहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड चेत रहा है। देश के हर बड़े शहर में एयर मॉनिटरिंग सिस्टम लगे हैं, लेकिन देहरादून में नहीं। इस सिस्टम से पल लोगों को प्रदूषण के स्तर की जानकारी मिलती है।
दून में प्रदूषण की मात्रा में वृद्धि चिंताजनक है। सरकार को अंधाधुध निर्माणों पर अकुंश, वाहनों पर रोक, इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग सहित कई सुझाव दिए गए हैं। जल्द ही दून के घंटाघर पर एयर मॉनिटरिंग सिस्टम लगाया जाएगा।
दून के दिल कहे जाने वाले घंटाघर पर पार्टिकुलेट मैटर यानि पीएम-10 (वातावरण में धूल के कण का स्तर) मानकों से कहीं गुना अधिक है। आईएसबीटी, रायपुर रोड पर भी हालात बदत्तर हैं।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाईड लाइन के मुताबिक पीएम-10 की वार्षिक औसत स्तर 20 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर होना चाहिए। जबकि 24 घंटे के लिए इसका स्तर 50 माइक्रो ग्राम प्रति घनमीटर होना चाहिए। वहीं पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों के हिसाब से यह मात्रा साल भर के लिए 60 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर और 24 घंटे के लिए 100 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर होना चाहिए। दोनों के मानकों के हिसाब से दून में पीएम-10 की मात्रा दो गुनी से अधिक है।
विशेषज्ञों की मानें तो पीएम-10 बढ़ने का मुख्य कारण कारखानों से निकलने वाला घुंआ, गंदगी, सड़कों की धूल, परिवहन का अत्याधिक लोड, ईंधन, अपशिष्ट जल, जंगलों में लगने वाली आग प्रमुख है।
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यह हो सकता है नुकसान: डॉक्टरों के मुताबिक पीएम-10 का कण मनुष्य के बाल से तीस गुना अधिक महीन होता है। गहरी सांस लेने पर यह फेफड़ों तक पहुंच जाता है। वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. मुकेश सुद्रिंयाल ने बताया कि इससे दिल का दौरा, स्ट्रोक, फेफड़ों का कैंसर व सांस संबंधी बीमारी हो सकती है।