ये 7 टेक्नोलॉजी बनायेंगी वर्ल्ड कप को और रोमांचक ! देखें क्या हैं वो …

क्रिकेट फैंस पर वर्ल्ड कप 2019 का बुखार चढ़ चुका है. क्रिकेट के आयोजकों की कोशिश है कि इसे बिना किसी विवाद के खेला जाए. इस काम में उनको क्रिकेट के मैदान पर इस्तेमाल होने वाली सात तकनीकों पर भरोसा है.

तकनीक ने क्रिकेट की दुनिया को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है. जैसे-जैसे क्रिकेट का विकास होता गया. वैसे-वैसे तकनीक क्रिकेट में अहम रोल निभाती रही. तकनीक की वजह न सिर्फ इस खेल में पारदर्शिता बढ़ी है बल्कि लोकप्रियता में भी इजाफा हुआ है.

इंग्लैंड और वेल्स में होने वाले क्रिकेट कप में कई तकनीक का इस्तेमाल होगा. जिससे न सिर्फ खिलाड़ी बल्कि फैंस भी इसका मजा लूटेंगे.

 

आइए जानते हैं कौन सी हैं ये सात तकनीक-

-गेंदबाज किस गति से गेंद फेंक रहा है, यह जानने के लिए स्पीड गन का इस्तेमाल हो रहा है. स्पीड गन माइक्रोवेव तकनीक पर आधारित है पर कुछ स्पीड गन डॉपलर रडार के जरिए संचालित होती है.

 

-अब टेस्ट क्रिकेट को छोड़ अन्य किसी फॉर्मेट में जिंग विकेट का इस्तेमाल किया जा रहा है. आईपीएल और कई वनडे सीरीज में भी इसका इस्तेमाल हुआ. इसमें स्टंप और गिल्लियों का एलईडी सिस्टम ऑस्ट्रेलिया के कैनिकल डिजाइनर ब्रोंटे एककैरमन ने बनाया. स्टंप को माइक्रोप्रोसेसर और कम वोल्टेज वाली बैटरी के साथ लगाया जाता है. इन बिल्ट सेंसर की मदद से यह सेकंड के हजारवें हिस्से को ही डिटेक्ट कर लेता है कि कोई चीज पास आ रही है.

 

-सुपर स्लो मोशन कैमरों का इस्तेमाल रन आउट, कैच, स्टंपिंग आदि देखने के लिए किया जाता है. ये कैमरे एक सेकंड में करीब पांच तस्वीर रिकॉर्ड करते हैं. इन कैमरों से भी अंपायरों को फैसला करने में मदद मिलती है.

 

-हॉट स्पॉट बताता है कि गेंद बल्ले से टकराई है या नहीं कई बार अंपायर के लिए यह निर्णय लेना आसान नहीं होता कि आउट की अपील सही है या नहीं . यह बॉल की हीट सिग्नेचर पर निर्भर करता है. अंपायर किसी निर्णय पर पहुंचने  से पहले हॉट स्पॉट और स्निकोमीटर दोनों की मदद लेते हैं.

 

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-जब कोई बल्लेबाज LBW होता है या गेंद किस दिशा में जा रही है, यह देखने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है इसमें छह कैमरों का इस्तेमाल किया जाता है जो गेंदबाज के हाथ से बॉल छूटने से लेकर बल्लेबाज तक पहुंचने तक के सभी एक्शन को रिकॉर्ड करता है. मैच के पूर्व इस तकनीकी के लिए अलग अलग दूरी और ऊंचाई पर कैमरे लगाकर कंप्यूटर के जरिए मैप तैयार किया जाता है इसकी मदद से टीवी अंपायर फील्ड अंपायर की तुलना में सटीक निर्णय दे सकते हैं.

 

-स्पाइडर कैम मैच शुरू होने के पहले स्टेडियम में मैदान के ऊपर एक छोर से दूसरे छोर तक मजबूत स्टील की तार बांधी जाती है इस पर स्पाइडर कैम लगाया जाते हैं. रिमोट के जरिए संचालित होने वाला यह कैमरा स्टेडियम में होने वाली गतिविधियों को दिखाता है. अंपायरों की मदद या प्रसारण के लिए इस कैमरे का इस्तेमाल किया जाता है.

 

-स्निकोमीटर बल्लेबाज और स्टंप  के आसपास का एरिया कवर करता है इस तकनीक का प्रयोग LBW कैच, या बारीक क्लीन बोल्ड को जांचने के लिए किया जाता है . इस तकनीक को इस तरह से प्रयोग किया गया है कि आवाज में थोड़े बदलाव को भी पहचान लिया जाए . इससे यह पता लग जाता है कि बल्ले ने बॉल को छुआ है या नहीं . स्निकोमीटर में एक माइक्रोफोन लगा होता है इससे पिच की दोनों तरफ किसी एक स्टंप में लगाया जाता है और यह ऑसीलोस्कोप से कनेक्ट रहता है जो ध्वनि तरंगों को मापता है.

 

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