मोदी सरकार में एक और मामले में नंबर वन है भारत, जानिए क्या है

भारत के लिहाज़ से बेहद शर्मनाक ख़बर सामने आई है. देश ने ऐसे मामले में पहले नंबर पर आने का रिकॉर्ड बनाया है जिस मामले में शायद ही कोई देश पहले नंबर पर होना चाहेगा. व्हाट्सएप पर बच्चा चोरी की अफवाह से लेकर ऐसी अफवाहों की वजह से हुई मॉब लिंचिंग की ख़बरें पहले ही सुर्खियां बटोर चुकी हैं और अब एक रिपोर्ट में ये ख़ुलासा हुआ है कि फेक न्यूज़ फैलाने के मामले में भारत नंबर वन है. आपको याद होगा कि फेक न्यूज़ के कहर से तंग आकर व्हाट्सएप को भारत में मैसेज फॉर्वर्डिंग की संख्या सीमित करके पांच करनी पड़ी थी.

रिपोर्ट में ये बात कही गई है कि भारत में इंटरनेट यूज़र्स को फर्जी खबरों का सबसे अधिक सामना करना पड़ता है. भारत में फर्जी खबरों का प्रसार वैश्विक औसत से कहीं ज़्यादा हैं. वहीं, ये रिपोर्ट किसी ऐसी वैसी कंपनी की नहीं बल्कि अमेरिका की दिग्गज कंपनी माइक्रोसॉफ्ट की है. माइक्रोसॉफ्ट द्वारा 22 देशों में किए गए सर्वे के मुताबिक 64 प्रतिशत भारतीयों को फर्जी खबरों का सामना करना पड़ा है. वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा 57 प्रतिशत का है. ये सर्वे भारत में आम चुनाव से पहले आया है.

माइक्रोसॉफ्ट ने बयान में कहा कि भारत इंटरनेट पर फेक न्यूज़ के मामले में वैश्विक औसत से कहीं आगे है. सर्वे में शामिल 54 प्रतिशत लोगों ने इसकी सूचना दी. इसके अलावा 42 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें फिशिंग जैसी वारदातों से भी जूझना पड़ा है. दिलचस्प ये है कि परिवार या दोस्तों द्वारा आनलाइन जोखिम बढ़ाने का आंकड़ा 9 प्रतिशत बढ़कर 29 प्रतिशत हो गया है.

सर्वे में कहा गया है कि भारत में सामाजिक सर्कल में पहले की तुलना में ख़तरे बढ़ गए हैं. ये बढ़त 29 प्रतिशत की है जिसकी वजह से भारत इस मामले में पहले नंबर पर आ गया है. एक और दुखद बात ये है कि ऐसे हालात के बावजूद इसके सुधार से जुड़े व्यापक कदम नहीं उठाए गए हैं.

उम्रदराज लोग फेक न्यूज शेयर करने में सबसे आगे
इसके पहले अमेरिका में किए गए एक अध्ययन में ये बात सामने आई थी कि ऐसे लोग जिनकी उम्र 36 से 55 साल के बीच होती है वो सबसे ज़्यादा फेक न्यूज़ फैलाते हैं. अध्ययन को साइंस एडवांस में पब्लिश किया गया था.

इसमें पाया गया था कि 9 प्रतिशत से कम अमेरिकियों ने साल 2016 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान फेसबुक पर पाए गए कई फेक न्यूज के लिंक्स को शेयर किया था. लेकिन न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने पाया कि ऐसा ज्यादातर उन लोगों में पाया गया जिनकी उम्र 65 साल से ज्यादा थी.

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जोशवा टकर ने कहा, “फेक न्यूज को कई भारी मात्रा में शेयर किया जाता है जहां हमें ये पता नहीं होता कि कौन सी खबर सही है और कौन सी गलत. और ऐसा हम ज्यादातर फेसबुक पर करते हैं. तो वहीं 2016 में हुए राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ऐसा काफी देखने को मिला.”

बता दें कि फेसबुक पर कुल 8.5 प्रतिशत लिंक्स फेक निकले. तो वहीं सिर्फ 3 प्रतिशत लोग ऐसे थे जिनकी उम्र 18 से 29 साल के बीच थी और उन्होंने फेक न्यूज को शेयर किया था. जबकि ये आंकड़ा 65 साल के लोगों में ज्यादा था जो 11 प्रतिशत था.

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‘फेक न्यूज के सबसे बड़े दोषी डोनाल्ड ट्रंप’
अभिव्यक्ति और विचार रखने की आजादी पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रिपोर्टर डेविड काये ने कहा था कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इंटरनेट पर गलत सूचनाओं के ‘सबसे बड़े दोषी’ हैं. काये ने डिजिटल राइट्स मॉनीटर वेबसाइट को दिए साक्षात्कार में कहा, “जब दुष्प्रचार की बात आती है तो सरकारें वास्तविक अपराधी होती हैं…मेरे देश में, अमेरिका में, फर्जी सूचनाओं को देने के सबसे खराब दोषी अमेरिका के राष्ट्रपति हैं.”

रिपोर्टर ने कहा, “सरकारों की तरफ से फैलने वाले फर्जी समाचार की समस्याओं को पत्रकारों को कवर करना चाहिए.” उन्होंने कहा, “गुगल, फेसबुक, ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म दुष्प्रचार (बॉट, विदेशी हस्तक्षेप) के खिलाफ बड़े पैमाने पर लड़ाई में मदद कर सकते हैं, लेकिन उन्हें कंटेंट नहीं हटाना चाहिए.”

काये के मुताबिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को कॉन्टेट पर नियंत्रण स्थापित करने के बदले स्पैम और बॉट खाते को कम करने पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए. यहां तक की बॉट्स ‘पेचीदा’ होते हैं, क्योंकि अच्छे और बुरे बॉट्स होते हैं’. ट्रंप ने कई बार अमेरिकी मीडिया को ‘लोगों का दुश्मन’ करार दिया है और ‘फर्जी समाचार’ फैलाने के लिए कई प्रतिष्ठानों की आलोचना की है.

आपको बता दें कि अमेरिकी मीडिया वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक ट्रंप ने 649 दिनों में 6,420 बार झूठे या गलत बयान दिए हैं. इसमें राष्ट्रपति के तौर पर अपने पहले ही कार्यकाल के पहले नौ महीनों में ही उन्होंने 1318 बार ऐसा किया था, मतलब कि उन्होंने लगभग रोज़ पांच बार या तो झूठ बोला या गलत बयानी की. बाद में हर रोज़ झूठ बोलने का उनका औसत 30 तक पहुंच गया.

पोस्ट के मुताबिक ट्रंप ने अपने कार्यकाल के शुरू होने से 30 अक्टूबर तक 6,420 बार ऐसा किया है. यह भी दावा किया गया है कि मध्यावधि चुनाव के दौरान अपने समर्थकों को बर्गलाने के लिए ट्रंप ने रोज़ 35 से 40 झूठ परोसे. अक्टूबर महीने में तो उन्होंने हद कर दी. 22 अक्टूबर को उन्होंने 83 बार ऐसा किया और 19 अक्टूबर को 73 बार ऐसा किया. ज़्यादातर मौकों पर उन्होंने ऐसा अपनी रैलियों में किया.

वैसे ऐसा करने वाले ट्रंप उनकी आलोचना वाली किसी भी रिपोर्ट या बात को फेक न्यूज़ बताकर ख़ारिज कर देते हैं. अचरज की बात ये है कि उनके समर्थक ट्र्रंप द्वारा फेक न्यूज़ बताकर ख़ारिज की गई बातों पर ट्रंप की राय का समर्थन भी करते हैं.

आम चुनाव में फेक न्यूज पर लगाम लगाएंगे FB, गूगल, ट्विटर
सोशल मीडिया पर बढ़ते फेक न्यूज को रोकने के लिए चुनाव आयोग ने फेसबुक, ट्विटर और गूगल से करार किया है. यह करार आने वाले लोकसभा चुनाव में फेक न्यूज़ के बढ़ते प्रसार को रोकने के लिए किया गया है. इस करार के तहत ये कंपनियां चुनावों के दौरान पोस्ट किये जाने वाले सारे राजनीतिक कंटेट पर नज़र रखेंगी और फेक न्यूज को बढ़ावा देने वाले पोस्ट को अपनी टाइमलाइन से भी हटाएंगी.

इन कंपनियों की चुनाव आयोग के साथ एक बैठक हुई थी. बैठक में चुनाव आयोग ने इन कंपनियों को निर्देश दिया कि चुनाव प्रचार खत्म होने से लेकर वोटिंग तक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कोई भी पार्टी किसी भी तरह का कोई राजनीतिक प्रचार नहीं कर पाए, इस बात का इन कंपनियों को ध्यान रखना होगा. चुनाव आयोग ने कहा कि वोटिंग से पहले राजनीतिक प्रचार पर रोक लगने के बाद भी पार्टियां सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को पैसे देकर इस पर प्रचार करने की कोशिश कर सकती हैं, इसीलिए इन प्लेटफॉर्मस को इस दौरान और ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत पड़ेगी.

सोशल मीडिया कंपनियों ने चुनाव आयोग को आश्वासन दिया है कि वो चुनावों के दौरान पार्टियों द्वारा किसी तरह के भड़काऊ और नकारात्मक राजीनितक प्रचार को अपने प्लेटफॉर्म से हटाने को लेकर तत्पर रहेंगी. गूगल ने आयोग से कहा कि वो खास तौर पर यह ध्यान रखेगा कि किसी भी राजनीतिक पार्टी की बेवसाइट से किसी तरह की गलत खबर और भड़काऊ पोस्ट न डाली जाए. चुनाव आयोग ने कहा कि अधिकांश पार्टियां अपने प्रचार के लिए इन्हीं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का प्रयोग करती हैं क्योंकि अधिकांश जनता इन्ही माध्यमों का प्रयोग कर रही है.

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