
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के कुछ प्रमुख प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगा दी। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की बेंच ने 22 मई को सुरक्षित रखे गए आदेश को सुनाते हुए अधिनियम के तीन मुख्य मुद्दों पर फैसला दिया।
कोर्ट ने पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन कुछ प्रावधानों को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया। यह फैसला याचिकाकर्ताओं को राहत देता है, जो अधिनियम को मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हैं।
कोर्ट ने किन प्रावधानों पर लगाई रोक?
कोर्ट ने अधिनियम के निम्नलिखित प्रमुख प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगाई:
- 5 वर्ष की इस्लाम प्रैक्टिस शर्त (सेक्शन 3(r)): अधिनियम के तहत वक्फ बनाने के लिए व्यक्ति को कम से कम 5 वर्ष से इस्लाम का पालन करने वाला होना अनिवार्य था। कोर्ट ने इसे राज्य सरकारें नियम बनाने तक निलंबित कर दिया। बेंच ने कहा कि बिना किसी ठोस परीक्षण के यह शर्त मनमानी हो सकती है, जो नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करेगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नियम बनने तक इस प्रावधान को लागू नहीं किया जाएगा।
- कलेक्टर को विवाद निपटाने की शक्ति: अधिनियम में जिला कलेक्टर (DM) को वक्फ संपत्ति पर सरकारी भूमि के कब्जे के विवादों का फैसला करने का अधिकार दिया गया था। कोर्ट ने इसे निलंबित कर दिया, क्योंकि कार्यपालिका (एक्जीक्यूटिव) को नागरिकों के अधिकार तय करने का अधिकार अलगाव के सिद्धांत (सिपरेशन ऑफ पावर्स) के विरुद्ध है। कोर्ट ने कहा कि कलेक्टर को ऐसी व्यापक शक्ति नहीं दी जा सकती जो संपत्ति के अधिकारों को प्रभावित करे।
कोर्ट ने वक्फ संपत्तियों की डिनोटिफिकेशन (सूची से हटाने) प्रक्रिया पर भी हस्तक्षेप किया। कोर्ट, उपयोग या दस्तावेज से घोषित वक्फ संपत्तियों को डिनोटिफाई करने तक मालिकों को संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।
कलेक्टर और बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों पर कोर्ट ने क्या कहा?
- कलेक्टर (DM) की भूमिका: कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि कलेक्टर को वक्फ संपत्ति को सरकारी भूमि घोषित करने या विवाद सुलझाने की शक्ति नहीं दी जा सकती। यह कार्यपालिका का दुरुपयोग होगा, जो न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा होना चाहिए। कोर्ट ने कहा, “कार्यपालिका नागरिकों के अधिकार तय नहीं कर सकती।” यह प्रावधान पूरी तरह निलंबित है, जब तक अंतिम सुनवाई न हो।
- वक्फ बोर्ड और केंद्रीय परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्य: कोर्ट ने गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर रोक नहीं लगाई, लेकिन उनकी संख्या सीमित कर दी। केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या 4 से अधिक नहीं होनी चाहिए, जबकि राज्य वक्फ बोर्डों में 3 से अधिक नहीं। कोर्ट ने कहा कि जहां संभव हो, चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर (CEO) मुस्लिम समुदाय से होना चाहिए। हालांकि, गैर-मुस्लिम को CEO बनाने वाले प्रावधान पर रोक नहीं लगाई गई। एक्स-ऑफिशियो सदस्यों को छोड़कर बोर्डों में केवल मुस्लिम सदस्यों की मांग को खारिज कर दिया गया।
अन्य महत्वपूर्ण निर्देश
- वक्फ पंजीकरण: कोर्ट ने पंजीकरण अनिवार्य करने वाले प्रावधान पर हस्तक्षेप नहीं किया, क्योंकि यह 1995 और 2013 के पुराने कानूनों में भी मौजूद था।
- अंतिम सुनवाई: कोर्ट ने कहा कि ये निर्देश अंतिम सुनवाई तक लागू रहेंगे, और याचिकाकर्ता व केंद्र अपनी दलीलें रख सकेंगे।
- याचिकाकर्ता और केंद्र का पक्ष: याचिकाकर्ताओं (AIMIM सांसद आसादुद्दीन ओवैसी, AAP विधायक अमानतुल्लाह खान, जमीयत उलेमा-ए-हिंद आदि) ने अधिनियम को धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26) का उल्लंघन बताया। केंद्र ने इसे पारदर्शिता बढ़ाने वाला बताया और स्टे का विरोध किया।
यह अंतरिम फैसला वक्फ संपत्तियों (मस्जिदें, मदरसे, कब्रिस्तान आदि) के प्रबंधन को प्रभावित करेगा। कोर्ट ने कहा कि कुछ प्रावधानों को सुरक्षा की जरूरत है, लेकिन मनमानी रोकनी होगी।