मरने से पहले भीष्म पितामह ने अर्जुन को बताया ऐसा सत्य, जिसे जानना आपके लिए है जरूरी…

2012 से मकर संक्रांति की तिथि को लेकर उलझन की स्थिति बनती चली आ रही है। पिछले कुछ वर्षों में मकर संक्रांति की तिथि को लेकर काफी उहापोह की स्थिति बनी रहती है।

साल 2019 में भी कुछ इसी तरह की स्थिति बनी हुई है। हालांकि इस साल मकर संक्रांति 15 जनवरी को है। सोमवार (14 जनवरी) की मध्य रात्रि में सूर्य का मकर में संक्रमण होगा जबकि मंगलवार 15 जनवरी को 12 बजे से पुण्यकाल है।

भीष्म पितामह ने अर्जुन को बताया ऐसा

इसलिए मंगलवार की सुबह से ही संक्रांति स्नान, दान शुरू हो जायेगा। 14 जनवरी को शाम 7:53 बजे सूर्य देव धनु से मकर राशि में प्रवेश करेंगे।

चूंकि सूर्य का राशि परिवर्तन सूर्यास्त के बाद होगा, इसके चलते पुण्यकाल और मकर संक्रांति के तहत 15 जनवरी को दान पुण्य का दौर होगा। मकर संक्रांति के साथ ही सूर्य दक्षिमायण से उत्तरायण हो जाएंगे।

शास्त्रों के नियम के अनुसार रात में संक्रांति होने पर अगले दिन संक्रांति मनाई जाती है। इस नियम के अनुसार ही इस बार संक्रांति 14 नहीं 15 जनवरी को मनाई जाएगी।

महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को ही चुना था, क्योंकि मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं, इसलिए संक्रांति मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

महाभारत की एक दूसरी कथा के अनुसार, युद्ध करते हुए भीष्म पितामह ने वचनबद्ध होने के कारण कौरव पक्ष की ओर से युद्ध किया था किंतु सत्य एवं न्याय की रक्षा के लिए उन्होंने स्वयं ही अपनी मृत्यु का सबसे बड़ा रहस्य अर्जुन को बताया था।

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अर्जुन ने शिखंडी की आड़ में भीष्म पितामह पर इस कदर बाणों की वर्षा की कि उनका पूरा शरीर बाणों से बिंध गया तथा वह बाण शय्या पर लेट गए किंतु उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति तथा प्रभु कृपा के चलते मृत्यु का वरण नहीं किया क्योंकि उस समय सूर्य दक्षिणायन था।

जैसे ही सूर्य ने मकर राशि में प्रवेश किया और सूर्य उत्तरायण हुए। भीष्म ने अर्जुन के बाण से निकली गंगा की धार का पान कर प्राण त्याग कर मोक्ष प्राप्त किया। मकर संक्रांति पर गंगा स्नान करना उत्तर भारत में इसलिए भी काफी विशेष माना जाता है। मकर संक्रांति को सूर्य एवं अग्नि की पूजा से भी जोड़ा जाता है।

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