भक्त को बचाने के लिये जब हुआ कृष्ण और महादेव का युद्ध, तो काँप उठी सारी धरती…जानें क्यों हुआ ऐसा..
महाप्रतापी एवं दैत्यराज बलि के 100 पुत्रों में बड़े पुत्र का नाम बाणासुर था, वह बचपन से ही भगवान शिव का परम भक्त था जब वाणासुर बड़ा हुआ तो वह हिमालय पर्वत की उच्ची चोटियों पर भगवान शिव की तपस्या करने लगा।
बाणासुर की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव उसे सहस्त्रबाहु के साथ-साथ अपार बलशाली होने का वरदान दिया। भगवान शिव के इस वरदान से अत्यन्त बलशाली हुए बाणासुर के सामने युद्ध में कोई भी टिक नहीं सकता था।
वरदान से महाबली हुए बाणासुर अपनी शक्ति पर इतना घंमड हो गया कि उसने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव को युद्ध के लिए चुनौती दे डाली।
बाणासुर की इस मूर्खता से क्रोधित हुए भगवान शिव ने उससे कहा कि तेरा अभिमान ज्यादा दिन नहीं चलेगा, तेरा नाश करने वाला जन्म ले चुका है, जिस दिन तेरे महल की ध्वजा गिरे उसी दिन समझ लेना तेरा काल आ गया है।
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वाणासुर की एक पुत्री थी जिसका नाम उषा था। एक दिन उषा ने अपने सपने में भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध को देखा, वह इतना आकर्षक था की उषा उस पर मोहित हो गई। सुबह उठकर उषा ने अपने सपने की बात अपनी सहेली चित्रलेखा को बताई।
चित्रलेखा ने अपने योगमाया से अनिरुद्ध का चित्र बनाकर उषा को दिखाया। उषा तुरंत उस चित्र को पहचान गई और कहा यह वही राजकुमार है जिसे मेने स्वप्न में देखा था।
इसके बाद चित्रलेखा ने द्वारिका जाकर सोते हुए अनिरुद्ध को पलंग सहित उषा के महल में पहुंचा दिया। जब अनिरुद्ध नींद से जागा तो उसने अपने आपको उषा के समीप पाया।